Shivakumar will be Deputy CM of Karnataka: मजबूत सांगठनिक क्षमता के बल पर कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले दिग्गज नेता डीके शिवकुमार मुख्यमंत्री पद की दौड़ में पिछड़ गए। 2013 से 2018 तक कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री रहे सिद्धारमैया एक बार फिर मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर सब कुछ अनुकूल होने के बावजूद डीके मुख्यमंत्री क्यों नहीं बन पाए?
डीके की कमजोरी : इसमें कोई संदेह नहीं कि डीके शिवकुमार कुशल संगठक हैं। उन्हीं के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव लड़ा गया था, ऐसे में मुख्यमंत्री पद के वे स्वाभाविक उम्मीदवार भी थे। कनकपुरा सीट पर उन्होंने रिकॉर्ड जीत (1 लाख 22 हजार से ज्यादा वोट) भी हासिल की थी। साथ ही लिंगायत के बाद बड़े वोक्कालिगा समुदाय से आने के कारण भी उनकी दावेदारी मजबूत मानी जा रही थी, लेकिन ऐन मौके पर सिद्धारमैया की ताजपोशी हो गई। ...और डीके को डिप्टी सीएम पद से संतोष करना पड़ा। हालांकि राज्य में संगठन की कमान उनके हाथ में ही रहेगी।
दरअसल, डीके की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि वे प्रवर्तन निदेशालय (ED), आयकर विभाग (Income tax department) और सीबीआई (CBI) की जांच के दायरे में हैं। इसके चलते उन्हें 104 दिन जेल में भी बिताने पड़े थे। ...और उनकी सबसे बड़ी कमजोरी भी यही थी। स्वयं शिवकुमार कांग्रेस की जीत के बाद यह कहते-कहते रो पड़े थे कि सोनिया गांधी उनसे मिलने के लिए जेल आई थीं और उन्होंने सोनिया, राहुल और मल्लिकार्जुन खरगे से वादा किया था कि वे कर्नाटक जीतकर उन्हें सौंपेंगे। उन्होंने अपना काम किया भी।
क्या थी कांग्रेस की दुविधा : हालांकि कांग्रेस नहीं चाहती थी कि इन हालात में डीके मुख्यमंत्री बनें और एक बार फिर केन्द्रीय एजेंसियां उन्हें अपने शिकंजे में ले लें। यदि ऐसा होता तो उन्हें बीच में ही मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ता, जो कि न उनके हित में होता और न ही कांग्रेस के हित में। ऐसे में उन्हें कांग्रेस यह समझाने में सफल रही कि उनके लिए राज्य का डिप्टी सीएम बनना ही अच्छा होगा। साथ अध्यक्ष पद भी उनके पास ही रहेगा। यदि डीके के खिलाफ पेंडिंग मामलों की जांच में तेजी भी आती है और उनके जेल जाने की नौबत भी आती है तो भी सरकार पर कोई आंच नहीं आएगी।
चूंकि सिद्धारमैया चुनाव से पहले ही घोषणा कर चुके हैं यह उनका आखिरी चुनाव है। ऐसे में लोगों और पार्टी की सहानुभूति भी उनके साथ थी। डीके की तुलना में वे वरिष्ठ हैं। सिद्धा इस बार 9वीं बार विधायक बने हैं, जबकि डीके चौथी बार।
डीके की ताकत भी कम नहीं : शिवकुमार भले ही मुख्यमंत्री नहीं बन पाए, लेकिन राज्य और पार्टी में उनकी ताकत से कोई भी इंकार नहीं कर सकता। मजबूत सांगठनिक क्षमता के कारण जीत का श्रेय भी उन्हें दिया जा रहा है साथ ही वे पार्टी और गांधी परिवार के प्रति वफादार माने जाते हैं। वोक्कालिगा समुदाय के साथ ही उसके संतों और नेताओं का भी उन्हें समर्थन प्राप्त है। उनके पास साधनों की भी कोई कमी नहीं है। चुनावी हलफनामे में उन्होंने 1400 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति की घोषणा की है।
ऐसा बिलकुल भी नहीं है कि कांग्रेस ने या फिर गांधी परिवार ने उन्हें खारिज कर दिया इसलिए वे मुख्यमंत्री नहीं बन पाए, बल्कि केन्द्रीय एजेंसियों के डर के चलते वे कर्नाटक के मुखिया नहीं बन पाए। हालांकि ऐसा भी कहा जा रहा है कि यदि स्थितियां उनके अनुकूल रहती हैं तो उन्हें अगले विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री बनाया भी जा सकता है।