आत्महत्या रोकने के लिए रणनीति बनाना क्यों जरूरी, क्या है सुसाइड रोकने का 'मध्यप्रदेश मॉडल'?

विकास सिंह

शनिवार, 10 सितम्बर 2022 (14:15 IST)
आज विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रवेंशन द्धारा आयोजित होने वाले विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस का उद्धेश्य लोगों को आत्महत्या से रोकने के तत्थों से जागरूक करना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनिया में हर साल 7 लाख से ज्यादा लोग आत्महत्या करते हैं। वहीं भारत में आत्महत्या के तेजी से मामले एक बड़े संकट की ओर इशारा कर रहे है।

हाल में ही राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ने वर्ष 2021 के जो आंकड़े जारी किए है वह इस बात की पुष्टि करते हैं कि लोगों में आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति एक विकराल समस्या लेती जा रही है। NCRB की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर दिन 450 लोग सुसाइड करते है यानि हर घंटे 19 लोग और औसतन 3 मिनट में एक व्यक्ति सुसाइड करता है। देश में सुसाइड के यह आंकड़े अब तक के सबसे ज्यादा है। रिपोर्ट बताती है कि पिछले साल 1 लाख 64 हजार 33 लोगों ने आत्महत्या की। आत्महत्या से मरने वालों में लगभग 1.19 लाख पुरुष, 45,026 महिलाएं शामिल है। एनसीआरबी के ही आंकड़े बताते है कि वर्ष 2017 में 1.29 लाख लोगों ने आत्महत्या की थी। अगर आंकड़ों का विश्लेषण किया जाए तो 2017 की तुलना में वर्ष 2021 में 26% से ज्यादा लोगों ने आत्महत्या की। 

NCRB की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2021 में सुसाइड के सबसे अधिक 22,207 मामले महाराष्ट्र में दर्ज किए गए। वहीं इसके बाद तमिलनाडु में 18,925, मध्य प्रदेश में 14,956, पश्चिम बंगाल में 13,500 और कर्नाटक में 13,056 मामले दर्ज किए गए।

विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि 15 से 29 साल के युवाओं के बीच मौत की चौथी सबसे बड़ी वजह आत्महत्या है। वहीं अगर भारत की बात करें तो एनसीआरबी की रिपोर्ट बताती है कि भारत में आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण पारिवारिक समस्या है। वर्ष 2021 में 33 फीसदी लोगों ने पारिवारिक समस्या के कारण आत्महत्या की। वहीं आत्महत्या के पीछे सबसे कारण आर्थिक भी एक बड़ा कारण है। NCRB के आंकड़ें बताते है कि वर्ष 2021 में 12 हजार 55 कारोबारियों ने आत्महत्या की। इनमें अधिकांश संख्या उन लोगों की है जिनका खुद का व्यवसाय था और कोरोना काल में व्यवसाय पर बुरा प्रभाव के बाद आर्थिक समस्या आत्महत्या का एक प्रमुख कारण रही। 

NCRB के आंकड़े बताते हैं कि आत्महत्या करनेवालों में कम आय वाले लोगों की संख्या ज्यादा है। कुल आत्महत्या के मामलों में दो तिहाई लोग प्रतिवर्ष एक लाख रुपये से कम कमाने वाले वर्ग के थे। इसके अलावा छोटे व्यापारी तथा प्रतिदिन कमाने खाने वाले लोगों में भी आत्महत्या के मामले 2021 में बढ़े हैं। इसके बाद नौकरी करने वाले और छात्रों की संख्या है। गौर करने वाली बात यह है कि आंकड़े उस समय के है जब देश  कोरोना की आपदा से जूझ रहा था।

प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डॉ. हरिश शेट्टी के मुताबिक आत्महत्या रोकथाम रणनीति के लिए निम्न आय वर्ग एवं असंगठित श्रमिकों के भीतर आत्महत्या के कारणों को चिन्हित कर उनकी आवश्यकताओं पर बल देना जरूरी है। 
आत्महत्या रोकथाम के लिए क्या हैं 'मध्यप्रदेश मॉडल'?- NCRB के आंकड़े बताते है कि वर्ष 2021 में मध्यप्रदेश देश में आत्महत्या के मामले में तीसरे स्थान पर है। ऐसे में मध्यप्रदेश सरकार अब आत्महत्या रोकथाम के लिए रणनीति बनाने में जुट गई है। प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सांरग के मुताबिक आत्महत्या रोकथाम रणनीति को लेकर एक्सपर्ट की टास्क फोर्स का गठन किया गया है, जो 2 महीने अपनी रिपोर्ट देगी।
 
चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सांरग ने कहा कि मध्यप्रदेश आत्महत्या रोकथाम रणनीति का एक विस्तृत डॉक्यूमेंट तैयार करने में आत्महत्या की समस्या के विभिन्न पहलुओं पर विचार किया जाएगा, जो सामाजिक परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए आगे आने वाले समय में इस समस्या की रोकथाम के लिए मील का पत्थर साबित होगा। आत्महत्या रोकथाम रणनीति बनाने वाला मध्यप्रदेश देश का पहला राज्य बनने जा रहा है। 
 
MP सरकार शुरु करेगी हेल्पलाइन-आत्महत्या रोकथान के लिए जनजागरण चलाने की दिशा में मध्यप्रदेश सरकार जल्द हेल्पलाइन शुरु करने जा रही है। इसके साथ आत्महत्या रोकथाम के लिए काउंसलिंग के साथ परिजन को प्रशिक्षण भी देने का प्रयास किया जायेगा। व्यक्ति के व्यवहार परिवर्तन का डाटा एनालिसिस कर उस पर काम किया जायेगा।  
 
मध्यप्रदेश में आत्महत्या रोकथाम नीति के लिए लगातार काम करने वाले और ‘यस टू लाइफ कैंपेन’ चलाने वाले  मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकान्त त्रिवेदी कहते हैं कि आत्महत्या रोकने के लिए जन जागरूकता सबसे बड़ा कदम होगी और लोगों को जीवन की महत्ता बतानी होगी। आत्महत्या के खिलाफ धार्मिक उपदेशों से जन-जागृति लायी जा सकती है। जिससे धर्म एवं अध्यात्म को भी रणनीति में जोड़ा जा सकता है। वह कहते हैं कि आज जरूरी है कि आत्महत्या की रोकथाम के लिए जन-प्रतिनिधियों एवं विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा आत्महत्या की रोकथाम के प्रति जनता में का प्रचार किया जाये। स्कूल और कॉलेज में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स में आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं की रोकथाम हेतु काउन्सलर नियुक्त करने के साथ समय-समय पर उनकी स्क्रीनिंग भी होनी चाहिए।

मध्यप्रदेश सरकार की आत्महत्या रोकथाम रणनीति के टास्क फोर्स के सदस्य डॉ. सत्यकांत कहते हैं कि रणनीति को तैयार करने के साथ आत्महत्या के रोकथाम को जन-आंदोलन के रूप में आगे ले जाने का प्रयास करना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस जन-आंदोलन में सामाजिक संगठनों, शिक्षा संस्थानों, विश्वविद्यालयों, संगठित-असंगठित क्षेत्र तथा उद्योग क्षेत्रों के प्रमुखों को शामिल करने पर विचार किया जा रहा है। वहीं आत्महत्या में उपयोग किये जाने वाले जहरीले पदार्थ जैसे कीटनाशक दवाएँ सहित विभिन्न विषैले पदार्थों की बिक्री को नियंत्रित करने की रणनीति पर भी काम करना चाहिए।

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