Opposition notice against Vice President Jagdeep Dhankhar: उपराष्ट्रपति पद से जगदीप धनखड़ को हटाने के लिए प्रस्ताव लाने का जो नोटिस विपक्षी दलों ने दिया है, उस पर आगे की कार्रवाई संविधान के अनुच्छेद 67 की व्याख्या पर काफी हद तक निर्भर करती क्योंकि देश के संसदीय इतिहास में ऐसा पहली बार है कि राज्यसभा के सभापति के खिलाफ यह कदम उठाया गया है।
क्या कहता है अनुच्छेद 67 (बी) : संविधान के अनुच्छेद 67 (बी) में कहा गया है कि उपराष्ट्रपति को राज्यसभा के एक प्रस्ताव, जो सभी सदस्यों के बहुमत से पारित किया गया हो और लोकसभा द्वारा सहमति दी गई हो, के जरिए उनके पद से हटाया जा सकता है। लेकिन कोई प्रस्ताव तब तक पेश नहीं किया जाएगा, जब तक कम से कम 14 दिनों का नोटिस नहीं दिया गया हो, जिसमें यह बताया गया हो ऐसा प्रस्ताव लाने का इरादा है।
उनका कहना था कि अब यह देखना होगा कि शीतकालीन सत्र में करीब 10 दिन का समय बचा है, ऐसे में क्या इस नोटिस को अगले सत्र (बजट सत्र) के दौरान विचार के लिए लिया जाता है या नहीं। गैरीमला ने कहा कि संभव है कि इसे इस आधार पर खारिज कर दिया जाए कि इस सत्र में 14 दिन का समय नहीं बचा है। वैसे यह देखना होगा कि इस पर आगे क्या होता है क्योंकि यह अपनी तरह का पहला मामला है।
विपक्ष के पास नहीं है संख्या बल : सदन में यदि इस प्रस्ताव को लाने की अनुमति मिलती है तो विपक्षी दलों को इसे पारित कराने के लिए साधारण बहुमत की जरूरत होगी, लेकिन फिलहाल उनके पास संख्या बल नहीं है। वर्तमान समय में राज्यसभा में कुल 243 सदस्य हैं और इसमें सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के पास बहुमत है।
क्या है विपक्ष का प्लान : विपक्ष ने इस बात पर जोर दिया है कि उसके इस कदम के पीछे संसदीय लोकतंत्र के लिए लड़ाई लड़ने का एक मजबूत संदेश है। राज्यसभा में पहली बार किसी सभापति के खिलाफ इस तरह का नोटिस दिया गया है। लोकसभा में अब तक तीन अध्यक्षों को हटाने का नोटिस दिया जा चुका है। देश के पहले लोकसभा अध्यक्ष जीवी मावलंकर के खिलाफ 1954 में नोटिस दिया गया था, जो खारिज कर दिया गया था। इसके बाद 1966 में तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष हुकूम सिंह के खिलाफ नोटिस दिया गया था जो खारिज हो गया था।