कैंसर को हराकर बनीं भारत की पहली Intuition coach, श्रद्धा सुब्रमनयन के संघर्ष और सफलता की कहानी

नृपेंद्र गुप्ता

बुधवार, 8 मार्च 2023 (00:46 IST)
मैदान पर अक्सर खिलाड़ी खेलते हुए लोगों को आगे बढ़ने का हौसला देता है। खेल भले ही छूट जाए पर खिलाड़ी खेल भावना कभी नहीं छोड़ता। महिला दिवस पर आज हम आपको मिलवा रहे हैं भारत की पहली इंट्यूशन कोच श्रद्धा सुब्रमनयन से। एक ऐसी शख्सियत से जो बाधा दौड़ की राष्ट्रीय खिलाड़ी रहीं, लेकिन नेशनल कैंप में एक गलती से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलने का सपना चकनाचूर हो गया। 
 
मुसीबत यहां खत्म नहीं हुई, जिंदगी की दौड़ में जब श्रद्धा सफलतापूर्वक आगे बढ़ रही थीं तब कैंसर भी चुनौती बन गया। कई तरह की बाधाएं आईं, लेकिन बाधा दौड़ ने उसे जिंदगी की हर चुनौती का सामना करना सिखाया। मैदान में डटे रहने और जीतने के जज्बे को आत्मसात करते हुए उन्होंने ना सिर्फ कैंसर को मात दी बल्कि अब वह एक अवॉर्ड विनिंग बिजनेस और एक्जिक्यूटिव कोच हैं। आज वे कई बड़े उद्योगपतियों की प्रेरणा बन गई हैं और बिजनेस की जटिल चुनौतियों का सामना करने के लिए उनका  मार्गदर्शन कर रही हैं।
स्पार्कलिंग सोल की सीईओ और संस्थापक श्रद्धा सुब्रमनयन का नेशनल एथलीट से लेकर कोच बनने का सफर बेहद रोमांचक है। 10 साल की उम्र में माता-पिता की प्रेरणा से एथलीट बनीं। सफलता के झंडे गाड़ते हुए नेशनल एथलीट बनीं। उस समय कोचिंग से इस तरह प्रभावित हुई कि 30 साल में कोचिंग ने कभी उनका साथ नहीं छोड़ा। श्रद्धा स्पोर्ट्स को बहुत इन्जॉय करती थीं, सीखने  को बहुत मिलता था। कमिटमेंट, डिसिप्लीन जैसी कई चीजें उन्हें खेलों ने दी।
 
इंजीनियरिंग की वजह से स्पोर्ट्स छोड़ना पड़ा। 15 साल इंजीनियर के रूप में काम किया। फिर कैंसर से जंग लड़ी और फिर एक उद्यमी बन गईं। अब श्रद्धा ऐसे मिशन पर चल पड़ी हैं जिसमें उन हजारों लोगों की दुआएं मिलती हैं, जिनसे वह शायद कभी मिली भी नहीं हो। उनका मानना है ‍कि हर सोल में एक स्पार्कल हैं जिसे उभरकर सामने आना चाहिए।
 
कैसे बनीं इंट्यूशन कोच : श्रद्धा वर्ष 2012 में कैंसर की वजह से निराश हो गई थीं। तब उन्होंने सोचा कि जब सकारात्मक होने के बाद भी मैं स्ट्रेस में आ सकती हूं तो दुनिया में लोगों के पास कितना स्ट्रेस है। इससे वे कैसे डील करेंगे। इसी समय उनके मन में लाइफ और बिजनेस कोच बनने का ख्याल आया। अब जब मैं देखती हूं कि मेरी वजह से लोगों के जीवन में बदलाव आ रहा है तो बहुत अच्छा लगता है।
 
श्रद्धा जब 15 साल की थीं तब उन्होंने हर्डल रेसिंग के नेशनल फाइनल में एक गलती कर दी। इस वजह से उनका नेशनल कैंप मिस हो गया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश के लिए खेलने का मौका गंवा दिया। उन्होंने कहा कि आज जब मैं बिजनेस ऑनर्स को कोच करती हूं, उनके बिजनेस रेवेन्यू को बढ़ाने में हेल्प करती हूं, तब लगता है कि एक खिलाड़ी के रूप में जो उपलब्धि तब हासिल नहीं कर पाई अब कर रही हूं। श्रद्धा का मानना है कि आप जो भी चाहते हैं उसे हासिल कर सकते हैं। उनका दावा है कि वे  मात्र 3 मिनट में अपने इंट्यूशन से मन की गहराई में स्थित सबकॉन्शियस ब्लॉक्स को पहचान सकती है।
 
बिजनेस कोच बनने का विचार : श्रद्धा ने बताया कि 2012 के हादसे के बाद मैं एक कोच के रूप में, एक मैसेंजर के रूप में, हर  तरह से लोगों की मदद करना चाहती थीं। श्रद्धा कहती हैं कि आज जब रिजल्ट दिखते हैं तो बहुत खुशी होती है। रोज क्लाइंट्स के मैसेज मिलते हैं कि यह काम हो गया, यह डील क्रेक हो गई, यह अपॉरच्युनिटी मिली। इससे बहुत संतुष्टि मिलती है।
 
बिजनेस कोच कैसे बन सकते हैं : अगर कोई लाइफ कोच या बिजनेस कोच बनना चाहता है तो सबसे पहले उसे एक अच्छा श्रोता  होना चाहिए। आपके पास हमेशा लोग आते हैं मदद मांगने, या आप सुन लेते हैं और जज नहीं करते, आप आसानी से लिस्निंग बिटविन द लाइन कर पा रहे हैं तो यह फिल्ड आपके लिए हैं। कोचिंग का स्पेस थोड़ा ज्यादा पॉवरफुल होता है क्योंकि वहां सिर्फ  सवाल होते हैं। जिसको आप कोच कर रहे होते हैं वे अंदर से सवाल का जवाब निकाल सकें। कोचिंग को वहां तक ले जाना एक स्किल है। यह अनुभव के साथ डेवल्प होती है।
 
कोचिंग इज द बिजनेस ऑफ ब्लेसिंग्स। आप पैसा भी कमा रहे हैं लेकिन ब्लेसिंग्स उससे भी ज्यादा कमा रहे हैं। उन्होंने बताया  कि जब आप कीचड़ में होते हैं तो आपको बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं दिखता पर जब आप ऑब्जरवर होते हैं तो आप  आसानी से इससे बाहर निकलने का रास्ता ढूंढ लेते हैं। कोचिंग भी इसी तरह ही है। कोच आपको चुनौती का सामना करने में मदद नहीं करता, कोच आपको इसका हल भी नहीं बताता, कोच के पास आपको उस स्पेस से लिफ्ट करने का पॉवर होता है।
 
बिजनेस कोच के रूप में चुनौती : Circle of perspectives नामक बुक की लेखिका ने कहा कि कई लोगों का मानना है ‍कि  बिजनेस लॉजिकल माइंड के साथ किया जाता है, यह स्ट्रेटेजी का गेम होता है। मैं हमेशा कहती हूं कि जब तक आप काम नहीं  करेंगे, स्ट्रेटेजी भी काम नहीं करेगी। अगर किसी रणनीतिकार ने कोई अच्छी रणनीति बनाकर दी और आपको अंदर से लग रहा है कि वह काम नहीं करेगी। भले सब उसे बेहतर मानते हैं और आप अंदर से तैयार नहीं है। कुछ मिसिंग लग रहा है तो इसे मैं लेक ऑफ अलाइनमेंट मानती हूं। 
 
जब तक अंदर की तैयारी नहीं होगी तक तक बाहर रिजल्ट नहीं आएंगे। मैं बिजनेस ऑनर के इंट्यूशन और एनर्जी पर काम करती हूं। यह दोनों जीवन और बिजनेस दोनों के लिए जरूरी है। आप दिनभर काम कर रहे हैं लेकिन आपका पूरा समय चीजों को  संभालने में जा रहा है। तो आप आउट ऑफ अलाइनमेंट है। क्योंकि हर एक व्यक्ति में एक इंटरनल पॉवर होती है जिससे आप अपने बिजनेस को बहुत आगे तक ले जा सकते हैं, इसे ही इंट्यूशन कहते हैं।
 
आप कम एफर्ट नहीं कर रहे हैं, आप एक ऐसे इंसान बन रहे हैं जो 'एट इज' काम कर रहे हैं। आपको ऐसा लगता है कि बिजनेस  खुद चलकर आपके पास आ रहा है। अगर आप लॉजिकल सोच रहे हैं तो यह बात डायजेस्ट करने में उतनी आसान नहीं होगी। जब मैं बिजनेस ऑनर्स के साथ काम करती हूं तो परिणाम बहुत अलग होते हैं। हम इसी आधार पर टारगेट एचीव कर पाते हैं। 
 
श्रद्धा कहती हैं कि एक बार आपकी तैयारी हो गई तो फिर आप दुनिया जीत सकते हैं। अगर सभी बिजनेस ऑनर्स इस आधार पर काम करें तो भारतीय अर्थव्यवस्था कहां से कहां पहुंच जाएगी। मेरा यही मानना है कि काम इस तरह हो कि काम ऐसे ना करें कि खुद ही परेशान हो रहे हैं, फैमेली पर ध्यान नहीं दे पा रहे हैं। इससे आप एक एरिया में तो आगे बढ़ रहे हैं लेकिन दूसरे एरिया में फुलफिल नहीं है। बिजनेस ऑनर्स को यही बात समझाना खासा चुनौतीपूर्ण है। एक बार जब यह बात समझ में आ जाती है तो चीजें आसान हो जाती हैं। 
 
कैंसर पीड़ितों के लिए वेलनेस सेंटर : श्रद्धा ने कैंसर मरीजों के लिए अपने माता-पिता के नाम पर एक सोशल इनीशिएटिव SJT  वेलनेस सेंटर स्थापित किया है। यह वेलनेस सेंटर ट्रीटमेंट और हीलिंग के बीच एक ब्रिज का काम करता है। कई बार कैंसर मरीज बेहतर इलाज मिलने के बावजूद हीलिंग की वजह सर्वाइव नहीं कर पाते। जबकि जिनको बेस्ट ट्रीटमेंट नहीं मिलने के बाद भी उनके इनवायरमेंट, उनकी सोच, उनकी विलिंगनेस, उनकी डिजायर यू लिव की वजह से आसानी से अपनी जिंदगी बिता पाते हैं, ट्रीटमेंट को झेल पाते हैं, क्योंकि उनके पास हीलिंग का स्पेस है।
 
कहां है मंदी : कारोबारियों के लिए जैकपॉट मैथर्ड की खोज करने वाली श्रद्धा ने एक सवाल के जवाब में कहा कि मंदी आपके दिमाग में है। आप कितना भी पैसा कमा लें, अगर आपका दिमाग सिर्फ मंदी के बारे में सोच रहा है तो आप पाएंगे कि अवसर होने के बाद भी आप मंदी में ही जी रहे हैं। कोरोना काल में काउंसलिंग के दौरान अकसर में लोगों से पूछती थी कि आपकी इंडस्ट्री में और कोई है जो आगे बढ़ रहा है? क्या कोई है जिसे लाभ हो रहा है? अकसर उनका जवाब हां होता था तो मैं पूछती थी कि वे ऐसा क्या कर रहे हैं जो आप नहीं कर रहे हैं। बहुत सारे बिजनेस ऑनर्स ने माना कि शायद हमारे एफर्ट्स में कमी है, शायद हमारा फोकस सिर्फ कोरोना काल पर है, सिर्फ मंदी पर है, इस बात पर भी हमारा फोकस है कि बिजनेस नहीं चल रहा है। हमारा फोकस इस बात पर नहीं रहता कि बिजनेस को आगे कैसे बढ़ाएं। 
 
खुद के बिजनेस पर ध्यान देने की सलाह सभी के लिए बेहद फायदेमंद साबित हुई। अगर रिसोर्सेस की कमी है तो उसे पूरा किया  जा सकता है। अगर आपके पास आइडिया है तो आप उन लोगों से एक कदम आगे हैं जिनके पास वो आइडिया नहीं है। मंदी को बाहर निकालिए। जब मंदी दिमाग से बाहर चली जाएगी तो आपका बिजनेस आगे बढ़ने लगा।

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