माईग्रेन रोग के इलाज के लिए एलोपैथिक दवाओं के नाम पर दर्द निवारक दवाएं दी जाती हैं लेकिन दर्द निवारक दवाओं के घातक दुष्प्रभावों से कई अन्य समस्याओं का होना भी आम बात है। अब लोगों को कुछ ऐसे उपायों की आवश्यकता महसूस होने लगी है जिनकी मदद से इस दर्दकार्क रोग पर काबू भी किया जा सके और इसके कोई दुष्प्रभाव भी ना हों। माईग्रेन एक बेहद दर्दकारक समस्या है, आदिवासी हर्बल जानकारों के अनुसार यह ज्यादातर सिर के बाएं अथवा दाहिने भाग में होता है, यानि सिर के एक ही हिस्से में इसे महसूस किया जाता है इसलिये इसे आधा सिर दर्द भी कहा जाता है। कभी-कभी यह दर्द ललाट और आंखों पर भी स्थिर हो जाता है। कहा जाता है कि माईग्रेन का दर्द सुबह उठते ही प्रारंभ हो जाता है और सूरज के चढ़ने के साथ रोग भी बढ़ता जाता है। दोपहर बाद दर्द में कमी हो जाती है। कारगर उपायों के तौर पर सुदुर ग्रामीण अंचलों में आदिवासी हर्बल जानकार अनेक हर्बल नुस्खों का इस्तमाल करते हैं, आज हम ऐसे ही एक कारगर नुस्खे का जिक्र करेंगे जिसे आमतौर पर आदिवासी अक्सर इस्तमाल में लाते हैं। एक महीने तक आजमाएं यह नुस्खा छ्त्तीसगढ़ में आदिवासी अरहर या तुवर के पत्तों (५० ग्राम) तथा दूब (दूर्वा घास) (५० ग्राम) का रस तैयार करते हैं, इन दोनो मिश्रण को आपस में अच्छी तरह घोल लिया जाता है और इसमें ३ काली मिर्च भी कूटकर मिला दी जाती है। आदिवासी हर्बल जानकार इस रस की करीब ३-३ बूंद मात्रा को नाक के नथूनों में डालने की सलाह देते हैं। ऐसा दिन में दो बार किया जाए तो कुछ दिनों में ही काफी फ़र्क महसूस किया जा सकता है। माना जाता है कि लगातार एक माह ऐसा करने से माईग्रेन उपचार में बेहद ज्यादा लाभ होता है। अरहर के पत्तों और काली मिर्च में दर्दनिवारक गुणों के होने की पुष्टि आधुनिक विज्ञान भी करता है।