कोरिया, चीन और भूटान जैसे देशों में पाए जाने वाले जिंसेंग ने भारतीय बाजार में पैठ जमाना शुरु कर दिया है, कई सेहत से जुडे उत्पादों में जिंसेंग को समाहित कर भारत देश में खूब प्रचारित करके बेचा भी जा रहा है।
मजे की बात ये भी है कि जिंसेंग आयात के जरिये ही हमारे देश तक पहुंच रहा है। ये बात समझ से परे है कि सफेद मुसली, गोखरू, अश्वगंधा, पुनर्नवा जैसी जडी-बूटियों को छोड क्यों हम जिंसेंग की तरफ भाग रहे? या तो हम अपने स्वदेशी ज्ञान पर कम भरोसा कर रहे या ये तय है कि हम विज्ञापन देखकर निर्णय लेने लगे हैं। जिंसेंग को चीन में श्रेष्ठ वाजीकरण जड़ी माना जाता है।
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आदिकाल से इसे एक महत्वपूर्ण टोनिक और सेहत दुरुस्त करने वाली जडी के तौर पर इस्तमाल किया जाता रहा है। तमाम पौराणिक लेखों से लेकर कई अत्याधुनिक शोधों ने भी इसकी असर क्षमता को प्रमाणित किया है।
सफ़ेद मुसली पुरुषों को शारीरिक तौर पर पुष्ट बनाने के अलावा इनके वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या बढाने में मददगार है। यही नहीं, कई शोध परिणाम ये भी बताते हैं कि डायबिटीस के बाद होने वाली नपुंसकता की शिकायतों में भी सफ़ेद मुसली क्लिनिकल तौर पर सकारात्मक असर करते दिखाई दी।
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चाईनीस जर्नल ओफ़ इंटीग्रेटड मेडिसन में प्रकाशित दिसंबर 2009 की एक रपट के अनुसार पोलीसेकेराईड और सेपोनिन से भरपूर इस जडीबूटी को सेक्सुअल डिसफंक्शन जैसी समस्याओं के निवारण के लिए सटीक माना गया है, इसके क्लिनिकल प्रमाण वाकई चौकाने वाले हैं।
आर्काइव्स ओफ़ सेक्सुअल बिहेवियर जर्नल में भी ऐसी ही शोध पर रिपोर्ट प्रस्तुत की जा चुकी हैं, इसके अलावा सैकडों ऐसे शोधपत्र हैं जिनमें इसके गुणों का बखान किया गया है और अनेक एनिमल स्ट्डीस भी की गयी।
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आदिवासी अंचलों में आदिवासी हर्बल जानकार प्रतिदिन 2 से 4 ग्राम सफ़ेद मूसली की जडों के चूर्ण के सेवन की सलाह देते हैं। ऐसा माना जाता है कि ये चूर्ण पुरुषों में सेक्स से संबंधित कई विकारों को दुरुस्त कर देता है।
इस चूर्ण का सेवन लम्बे समय तक करने पर भी किसी तरह की परेशानी नहीं। चाहे वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या कम हो, नपुंसकता की शिकायत हो या स्वप्नदोष, मूसली हमेशा हर्बल जानकारों द्वारा सुझाई जाती है।