why goddess durga idol make from the soil of prostitutes courtyard: भारत में दुर्गा पूजा एक प्रमुख त्योहार है, जिसमें देवी दुर्गा की प्रतिमाएं पूरी श्रद्धा के साथ बनाई जाती हैं। इन प्रतिमाओं को बनाने के लिए कई पवित्र सामग्रियों का उपयोग किया जाता है, जिनमें से एक है वैश्यालय के आंगन की मिट्टी। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसके पीछे कई धार्मिक और सामाजिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। आइए जानते हैं कि इस रहस्यमयी परंपरा के पीछे क्या कारण है और क्यों इस मिट्टी को इतना पवित्र माना जाता है।
पौराणिक कथा: एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार कुछ वेश्याएं गंगा स्नान के लिए जा रही थीं। रास्ते में उन्होंने एक कुष्ठ रोगी को देखा जो लोगों से गंगा में स्नान करवाने की गुहार लगा रहा था। लेकिन कोई भी उसकी मदद के लिए आगे नहीं आया। तब उन वेश्याओं ने उस रोगी को उठाकर गंगा में स्नान करवाया। वह रोगी और कोई नहीं, बल्कि स्वयं भगवान शिव थे। भगवान शिव ने उनकी सेवा और दयालुता से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दिया। इस कथा को इस परंपरा से जोड़ा जाता है, जहां वेश्याओं का त्याग और सेवा भाव उनकी पवित्रता को दर्शाता है।
एक अन्य मान्यता: एक और मान्यता यह है कि गृहलक्ष्मी स्वयं देवी लक्ष्मी का स्वरूप होती हैं। जब एक पुरुष अपनी पत्नी के प्रति वफादार नहीं रहता और वैश्यालय जाता है, तो वह अपने घर की लक्ष्मी का अपमान करता है। ऐसे में, उसके सभी अच्छे कर्म और सकारात्मक ऊर्जा उसके घर से निकलकर वैश्यालय के आंगन में आ जाती है। इस प्रकार, वैश्यालय के आंगन की मिट्टी को उन सभी पुण्यों और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है, जिसे देवी दुर्गा की प्रतिमा बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। इस मान्यता के माध्यम से समाज में इस वर्ग को भी सम्मान देने का प्रयास किया जाता है।
क्या है इस परंपरा का उद्देश्य?
पहले इस परंपरा का निर्वहन मंदिर के पंडित किया करते थे लेकिन धीरे धीरे मूर्तिकार भी इससे जुड़ गए। इस परंपरा का गहरा उद्देश्य समाज के उन लोगों को भी सम्मान देना है जिन्हें अक्सर बहिष्कृत माना जाता है। यह दिखाता है कि आध्यात्मिकता और पवित्रता किसी वर्ग या पेशे तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हर व्यक्ति के अंदर मौजूद हो सकती है। यह परंपरा हमें सिखाती है कि देवी दुर्गा की पूजा और उनकी प्रतिमा का निर्माण समाज के हर वर्ग के योगदान के बिना अधूरा है।
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