ब्रह्मचारिणी माता की पौराणिक कथा सहित जानें 8 रहस्य

सोमवार, 26 सितम्बर 2022 (17:18 IST)
Shardiya Navratri 2022: शारदीय नवरात्रि का पर्व चल रहा है और आज है नवरात्र का दूसरा दिन। इस दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है। कौन है मां ब्रह्माचारिणी और किस कारण होती है उनकी पूजा एवं आराधना? उन्हें कौनसा प्रसाद अर्पित किया जाता है, क्या है उनकी पूजा का मंत्र और क्या है उनकी पौराणिक कथा। आओ जानते हैं सबकुछ।
 
ब्रह्मचारिणी का रहस्य और पौराणिक कथा | The Mystery and Mythology of Brahmacharini
 
1. ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली। माता ने तप करने शिवजी को प्रसन्न किया था। 
 
2. ब्रह्मचारिणी मां का मंत्र- ब्रह्मचारिणी ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:। या 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम:।'
 
3. देवी ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ मे जप की माला है, बाएं हाथ में कमंडल है। देवी ब्रह्मचारिणी साक्षात ब्रह्म का स्वरूप है अर्थात तपस्या का मूर्तिमान रूप है। ये देवी भगवती दुर्गा, शिवस्वरूपा, गणेशजननी, नारायनी, विष्णुमाया तथा पूर्ण ब्रह्मस्वरूपिणी के नाम से प्रसिद्ध है।
 
4. या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। अर्थ : हे मां! सर्वत्र विराजमान और ब्रह्मचारिणी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूं।
 
5. देवी ह्मचारिणी माता को चीनी और पंचामृत का नैवेद्य लगाने से स्मरण शक्ति और उम्र बढ़ती है। ब्राह्मण को दान में भी चीनी ही देनी चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से मनुष्य दीर्घायु होता है। इसके अलावा उन्हें दूध-दही का भोग भी लगता है।
 
6, देवी की पूजा करने से साधना में उन्नति होती है। अटके कार्य पूरे होते, रुकावटें दूर होती और विजय की प्राप्ति होती है।
 
7. ज्योतिष मान्यता अनुसार देवी मंगल ग्रह को नियंत्रित करती है। इसकी पूजा से मंगल ग्रह से जुड़ी सभी समस्या दूर हो जाती है।
8. माता की कथा : 
 
माता सती ने अपने दूसरे जन्म में हिमालय राज के यहां जन्म लिया और नारदजी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया। 
 
कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे। तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए। इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए। कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया।
 
कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा- हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की। यह तुम्हीं से ही संभव थी। तुम्हारी मनोकामना परिपूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ। जल्द ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं।

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