अश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिप्रदा से शारदीय नवरात्रि का नौ दिवसीय महोत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन से माहौल 'आयो-आयो नवरात्रि त्योहार हो अम्बे मैया तेरी जय-जय-कार' जैसे भजनों से गूँज उठता है। अधिकांश श्रद्धालुजन अपने-अपने मोहल्लों में माँ भगवती की प्रतिमा स्थापना करते हैं।
किसी भी रूप में देखा जाए तो यह हिन्दू समाज का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जिसका धार्मिक, आध्यात्मिक, नैतिक व सांसारिक चारों दृष्टिकोण से महत्व है। भक्तजन इस अवसर पर माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करते हैं। अतः इसे नवरात्र के नाम भी जाना जाता है। देवी के नौ रूप क्रमशः इस प्रकार हैं- प्रथम-शैलपुत्री, दूसरी-ब्रह्मचारिणी, तीसरी-चन्द्रघंटा, चौथी-कुष्मांडा, पाँचवीं-स्कंधमाता, छठी-कात्यायनी, सातवीं-कालरात्रि, आठवीं-महागौरी, नौवीं-सिद्धिदात्री। नवरात्रि में देवी के इन्हीं नौ रूपों की पूजा का महात्म्य है ।
आश्विन शुक्ल प्रतिपदा तिथि शारदीय नवरात्र का प्रारम्भ अश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को कलश स्थापना के साथ होता है। कलश को हिन्दू विधानों में मंगलमूर्ति गणेश का स्वरूप माना जाता है, अतः सबसे पहले कलश की स्थापना की जाती है। कलश स्थापना के लिए भूमि को शुद्ध किया जाता है। भूमि की शुद्धि के लिए गाय के गोबर और गंगाजल से भूमि को लीपा जाता है।
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विधान के अनुसार इस स्थान पर सात प्रकार की मिट्टी को मिलाकर एक पीठ तैयार किया जाता है। अगर सात स्थान की मिट्टी नहीं उपलब्ध हो तो नदी से लाई गई मिट्टी में गंगा नदी की मिट्टी मिलाकर इस पर कलश स्थापित किया जा सकता है।
1. शैलपुत्री 2. ब्रह्मचारिणी 3. चन्द्रघण्टा 4. कुष्मांडा 5. स्कन्दमाता 6. कात्यायनी 7. कालरात्रि 8. महागौरी 9. सिद्धिदात्री। माँ दुर्गा के नवरूपों की उपासना निम्न मंत्रों के द्वारा की जाती है।
9. सिद्धिदात्री सिद्धगन्धर्वयक्षाघैरसुरैरमरैरपि । सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी ॥
प्रथम दिन शैलपुत्री की एवं क्रमशः नौवें दिन सिद्धिदात्री की उपासना की जाती है। नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती का नित्य एक बार पाठ किया जाए तो निश्चित ही अधिकांश समस्याओं का समाधान हो सकता है। यदि निष्काम भाव से माँ जगत् जननी की आराधना की जाए तो जीवन धन्य हो जाता है।
यदि कोई समस्या हो वो भगवती के सामने सच्चे ह्रदय से अपनी समस्या को बताकर पाठ करें तो आपकी समस्या अवश्य दूर होगी। जिस प्रकार माँ की आराधना करते हैं, उसी प्रकार अपनी माँ की भी पूजा करना चाहिए तभी सच्ची आराधना होगी।