कहते हैं कलियुग में जगदम्बा दुर्गा और श्री गणेश ही प्रधान देव होंगे और यह प्रत्यक्ष दिख भी रहा है। जिस ऊर्जा और उत्साह से गणपति उत्सव एवं नवरात्रि मनाए जाते हैं, वैसे अन्य देव की तिथि, उत्सव या पर्व नहीं।
नए मूल्यों और मान्यताओं के हिसाब से भी ये समीचीन बैठता है, क्योंकि भगवती दुर्गा शक्ति की एवं श्री गणेश बुद्धि और युक्ति के देवता हैं और वर्तमान युग तकनीकी प्रतिभा, कौशल, बुद्धि, प्रयत्न सबसे यथासंभव अधिक से अधिक शक्ति प्राप्त करने का है।
प्रस्तुत लेख का उद्देश्य इस पावन पर्व के सर्वाधिक सदुपयोग, शक्ति संचय, पूजा-प्रार्थना के लिए दिखावे से बचने, कठिन अनुष्ठानों से यथासंभव बचने के लिए करने की चर्चा करने का है। ये काल है या दैव कि हमारे अमृत उत्सव अपने मूल अर्थों, नियमों, अनुष्ठानों से हटकर केवल व्यक्तिगत यश, दिखावे, अपव्यय, असंगत उत्सवों और शोर में बदल दिए गए हैं।
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एक वजह तो स्पष्ट है कि ये सब बाजार का, मीडिया का दुष्कृत्य है कि जो मनुष्य की आस्था, भक्ति, भावना, परंपरा सबमें व्यवसाय और लाभ ढूंढ लेती है एवं लगातार भीड़ को इस भेड़चाल में चलने को बाध्य कर देता है।
देवी पूजा से कई तांत्रिक प्रयोग एवं अनुष्ठान जुड़े हैं, पर किसी समर्थ, अनुभवी जानकार मार्गदर्शक के इनसे जनसामान्य जितना दूर रहें, उतना लाभप्रद है। बिना विधि, निषेध, शुद्धिकरण, शापोद्धार न्यास कवच कीलक अर्गला जप पाठ विधि मंत्रोच्चारण सामग्री, सुदिन, सुतिथि, मुहूर्त के साधे यह सब लाभ के स्थान पर हानिकारक भी हो सकते हैं।
फिर सनातन हिन्दू धर्म की एक सर्वकालिक व्यवस्था है कि शुद्ध हृदय से की गई छोटी से छोटी पूजा से भी अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त किया जा सकता है।
यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि।
मैं यज्ञों में सर्वश्रेष्ठ जपयज्ञ हूं।
ज्यादा अच्छा है हम इन अद्वितीय पर्वों पर शुद्ध हृदय से भगवती के कल्याण मंत्रों का जाप करें। दुर्गा सप्तशती की ही तरह लाभ देने वाली सप्त श्लोकों के दुर्गापाठ को प्राथमिकता दें। देवी के एक सौ आठ नामों का जप करें।
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देवी दुर्गा के बत्तीस नामों की माला का जप करें जिसकी फलश्रुति है कि कठिन से कठिन रोग, दु:ख, विपत्ति और भय का नाश करने वाला यह अमोघ और अमृत प्रयोग हैं। केवल संस्कृत मंत्र ही प्रभावी हो, ऐसा नहीं है। उन्हीं के समतुल्य प्रासादग्रंथ श्रीरामचरित मानस की कुछ चौपाइयां भी उतनी ही प्रभावशाली और चमत्कारी परिणाम देने वाली है।
श्रीरामचरित मानस की दिव्य चौपाइयां
1. देविपूजि पद कमल तुम्हारे सुरनर मुनि सब होहि सुखारे।
2. मोर मनोरथ मानहुं नीके बसहु सदा उरपुर सबही के।
3. जय गजबदन षडानन माता जगत जननि दामिनी द्रुति गाता।
4. अजा, अनादि शक्ति अविनाशिनी सदा शंभु अर्धंग निवासिनी जगसंभव पालन कारिनी निज इच्छा लीला वपु धारिणी।