नवरात्रि पर 10 महाविद्याओं की कैसे पाएं कृपा...

शक्ति उपासना चिरकाल से की जा रही है। दस महाविद्याओं में दो कुल माने जाते हैं- काली कुल तथा श्री कुल। काली कुल में काली, तारा तथा भुवनेश्वरी आती हैं। श्री कुल में त्रिपुर सुंदरी, भैरवी, धूमावती, मातंगी, बगलामुखी, कमला, छिन्नमस्ता आती हैं। तंत्र साधना तलवार की धार पर चलने के समान है अत: चूक या लापरवाही नहीं होना चाहिए। किसी भी साधना के लिए मुख्य वस्तु प्राण-प्रतिष्ठित यंत्र है अत: उपलब्धता पर ध्यान दें।


 
(1) आदिशक्ति काली-  दस महाविद्या की प्रथम देवी हैं। इनके लिए लाल रंग के वस्त्र आसन, काली हकीक की माला इत्यादि आवश्यक हैं। 
 
समय- रात्रि, दिशा- पूर्व। 
 
मंत्र इस प्रकार हैं-
 
'ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं दक्षिण का‍लिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं स्वाहा।
 
इनके भैरव महाकाल हैं जिनका जप दशांस किया जाना चाहिए। इस महाविद्या से विद्या, लक्ष्‍मी, राज्य, अष्टसिद्धि, वशीकरण, प्रतियोगिता विजय, युद्ध-चुनाव आदि में विजय मोक्ष तक प्राप्त होता है। 
 
(2) तारा-महाविद्या- यह दस महाविद्याओं में दूसरी महाविद्या हैं। शत्रुओं का नाश, ज्ञान तथा जीवन के हर क्षेत्र में सफलता के लिए इनकी साधना की जाती है। इनके भैरव अक्षोभ्य हैं। श्वेत वस्त्रासन तथा स्फटिक माला प्रशस्त मानी जाती है। 
 
मंत्र प्रकार है- 
 
'ॐ ऐं ओं क्रीं क्रीं हूं फट्।' 
 
(3) षोडशी महाविद्या- तीसरी महाविद्या हैं। इनके भैरव पंचवक्त्र शिव हैं। तथा हर क्षेत्र में सफलता हेतु इनकी साधना की जाती है। 
 
इनका मंत्र इस प्रकार है- 
 
'श्री ह्रीं क्लीं ऐं सौ: ॐ ह्रीं क्रीं कए इल ह्रीं सकल ह्रीं सौ: ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं नम:।'
 
पूजा-सामग्री, आसन, वस्त्र, नैवेद्य सभी श्वेत होने चाहिए। समय ब्रह्म मुहूर्त माना गया है। 
 
(4) भुवनेश्वरी- चौथी महाविद्या हैं। इनके भैरव त्र्यम्बक‍ शिव हैं। इनका साधक कीचड़ में कमल की तरह संसार में रहकर भी योगी कहलाता है। वशीकरण, सम्मोहन, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष देती हैं। पूजन सामग्री रक्त वर्ण की होनी चाहिए। 
मंत्र- 
 
'ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं सौ: भुवनेश्वर्ये नम: या ह्रीं।' 
 
भगवान कृष्ण की भी माता भुवनेश्वरी आराध्या रही हैं जिससे वे 'योगेश्वर' कहलाए। 
 
(5) माता छिन्नमस्ता- 5वीं महाविद्या है। ये संतान प्राप्ति, दरिद्रता निवारण, काव्य शक्ति लेखन आदि तथा कुंडलिनी जागरण के लिए भजी जाती हैं। 
 
इनका मूल मंत्र इस प्रकार है- 
 
'श्री ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरायनीये हूं हूं फट् स्वाहा।' 
 
 

 


(6) त्रिपुर भैरवी- ये 6ठी महाविद्या हैं। ऐश्वर्य प्राप्ति, रोग-शांति, त्रैलोक्य विजय व आर्थिक उन्नति की बाधाएं दूर करने के लिए पूजी जाती हैं। 
 
इनका मूल मंत्र इस प्रकार है- 
 
'ह स: हसकरी हसे।'
 
(7) धूमावती- 7वीं महाविद्या हैं। ज्येष्ठा लक्ष्मी कहलाती हैं। कर्ज से मुक्ति, दारिद्र्य दूर करने, जमीन-जायदाद के झगड़े निपटाने, उधारी वसूलने के लिए पूजी जाती हैं। ध्यान रखने योग्य है कि शून्यागार या श्मशान में ही साधना की जाती है। श्वेत वस्त्र, तुलसी की माला, दूसरी देवियों की तरह पूजन सामग्री निषेध है। रंगीन वस्तु कोई भी नहीं चढ़ाई जाती है। 
 
इसका मूल मंत्र इस प्रकार है- 
 
'धूं धूं धूमावती ठ: ठ:।'
 
(8) श्री बगलामुखी- 8वीं महाविद्या हैं। यह युग इनका ही है। रोग-दोष, शत्रु शांति, वाद-विवाद, कोर्ट-कचहरी में विजय, युद्ध-चुनाव विजय, वशीकरण, स्तम्भन तथा धन प्राप्ति के लिए अचूक साधना मानी जाती है। विशेष सावधानी आवश्यक है। पीला आसन, वस्त्र, हरिद्रा माला आदि का प्रयोग होता है। 
 
मंत्र- 
 
'ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय, जिव्हा कीलय, बुद्धिं विनाश्य ह्लीं ॐ स्वाहा।'
 
(9) मातंगी- नवीं महाविद्या हैं। शीघ्र विवाह, गृहस्थ जीवन सुखी बनाने, वशीकरण, गीत-संगीत में सिद्धि प्राप्त करने के लिए पूजी जाती हैं। 
 
मंत्र- 
 
'श्री ह्रीं क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा।'
 
(10) कमला- दसवीं महाविद्या हैं। भौतिक साधनों की वृद्धि, व्यापार-व्यवसाय में वृद्धि, धन-संपत्ति प्राप्त करने के लिए पूजी जाती हैं। गुलाबी वस्त्रासन, कमल गट्टे की माला आदि प्रयोग किए जाते हैं। 
 
मंत्र- 
 
'ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद-प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नम:।'
 
इस प्रकार संक्षिप्त में जानकारी दी गई है। गुरु मुख से लिए गए मंत्र शीघ्र प्रभावी होते हैं। यंत्रार्चन अति आवश्यक है। भोजन में सात्विक भोजन ही लें। नशा निषिद्ध है। इति।

वेबदुनिया पर पढ़ें