Shardiya Navratri Siddhidatri 2025: नवरात्रि में नवमी पर माँ सिद्धिदात्री की पूजा का है विशेष महत्व चैत्र हो या शारदीय नवरात्रि, दोनों में ही नवमी यानी नौवें दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा का विशेष विधान है। इस दिन की पूजा, हवन और कन्या भोज के बाद ही कई घरों में नवरात्रि के व्रत का पारण किया जाता है। सिद्धिदात्री सिद्धि, वरदान देने वाली है।
माँ सिद्धिदात्री का स्वरूप
स्वरूप: माँ सिद्धिदात्री का स्वरूप अर्द्धनारीश्वर है। उनका यह रूप सिद्धि और वरदान देने वाला है।
वाहन: कमलासन, सिंह
चार हाथ: माँ सिद्धिदात्री के चार हाथ हैं, जिनमें वे चक्र, गदा, शंख और कमल धारण करती हैं।
पूजा विधि, भोग और मंत्र (नवमी के लिए)
1. पूजा की तैयारी
नवमी की सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें।
लकड़ी के एक पाट (चौकी) पर माँ सिद्धिदात्री का चित्र या मूर्ति स्थापित करें।
गंगाजल छिड़ककर स्थान को पवित्र करें।
दीपक और अगरबत्ती जलाकर पूजा शुरू करें।
रोली, अक्षत, नैवेद्य (भोग) सहित षोडशोपचार (सोलह सामग्री) से पूजा करें।
2. भोग और फूल
भोग: माँ सिद्धिदात्री को तिल, तिल से बनी मिठाई, खीर, संतरा का भोग प्रिय है।
फूल: उन्हें कमल और चंपा के फूल अर्पित करना शुभ माना जाता है।
3. मंत्र और जप
माँ सिद्धिदात्री का मंत्र है:
ॐ सिद्धिदात्र्यै नम:।
इस मंत्र का जाप चंदन या कमलगट्टे की माला से करें।
मंत्र जप के बाद दुर्गा सप्तशती और दुर्गा चालीसा का पाठ करें।
4. अंत में
-कन्या भोज (कन्या पूजन) करें, जो नवमी के दिन विशेष रूप से किया जाता है।
-माँ की आरती करें और कथा का श्रवण करें।
माँ सिद्धिदात्री की कथा
पौराणिक मान्यताओं अनुसार एक बार पूरे ब्रह्मांड में अंधकार छा गया था। उस अंधकार में एक छोटी सी किरण प्रकट हुई। धीरे-धीरे यह किरण बड़ी होती गई और फिर उसने एक दिव्य नारी का रूप धारण कर लिया। कुछ पौराणिक कथाओं और शास्त्रों में उल्लेख है कि आदि शक्ति ही इस ब्रह्मांड की रचनाकार हैं और उन्होंने ही त्रिदेवों को उत्पन्न किया था। पुराणों के अनुसार, भगवान शिव ने माँ सिद्धिदात्री की तपस्या की थी, जिससे उन्हें अष्ट सिद्धियाँ प्राप्त हुईं और उनका आधा शरीर देवी का हुआ, इसलिए शिव का एक नाम 'अर्धनारीश्वर' भी है। इसलिए देवी को सिद्धिदात्री कहा जाता है।