'दुर्गा सप्तशती' के सात सौ श्लोकों को तीन भागों प्रथम चरित्र (महाकाली), मध्यम चरित्र (महालक्ष्मी) तथा उत्तम चरित्र (महा सरस्वती) में विभाजित किया गया है। प्रथम चरित्र में महाकाली का बीजाक्षर रूप ॐ 'एं है। मध्यम चरित्र (महालक्ष्मी) का बीजाक्षर रूप 'ह्रीं' तथा तीसरे उत्तम चरित्र महासरस्वती का बीजाक्षर रूप 'क्लीं' है। इस पाठ को श्रद्धापूर्वक करने से सभी देवियां प्रसन्न होती हैं।
पाठ का फल : कहते हैं कि प्रथम अध्याय से चिंता मुक्ति, दूसरे से विवादों से मुक्ति, तीसरे से शत्रु से मुक्ति, चतुर्थ से श्रद्धा का संचार, पांचवें से देवी कृपा प्राप्त होती है। छठे से भय, शंका, ऊपरी बाधा से मुक्ति, सातवें से मनोकामना पूर्ण, आठवें से मनचाहा जीवनसाथी मिलता है। नवमें अध्याय से खोए हुए व्यक्ति का मिलना और संतान सुख की प्राप्ति होती है। दसवें अध्याय से रोग, शोक का नाश, मनोकामना पूर्ति होती है। ग्यारहवें अध्याय से व्यापार लाभ, सुख शांति की प्राप्ति होती है। बारहवें से मान-सम्मान में वृद्धि। तेरहवें से देवी की भक्ति एवं कृपा दृष्टि प्राप्त होती है।
2.चण्डी पाठ : कहते हैं कि श्रीराम चंद्र ने युद्ध पर जाने से पहले शारदीय नवरात्रि की प्रतिपदा को समुद्र के तट पर चण्डी पाठ किया था। चण्डी पाठ मार्केण्डेय पुराण का हिस्सा है। इस पुराण में चण्डी पाठ के सात सौ श्लोक हैं। चण्डीपाठ के रूप में समस्त 700 श्लोक अर्गला, कीलक, प्रधानिकम रहस्यम, वैकृतिकम रहस्यम और मूर्तिरहस्यम के छह आवरणों में बंधे हुए हैं। चण्डी पाठ करने से हर क्षेत्र में विजय प्राप्त होती है।
चण्डी पाठ करने से माता तत्काल प्रसंन्न होती है, लेकिन इस पाठ में सावधानियां रखना जरूरी है। जैसे, चण्डी पाठ करने से पहले कमरे को शुद्ध, स्वच्छ, शान्त व सुगंधित रखना चाहिए। माता दुर्गा के स्थापित स्थान के आस-पास किसी भी प्रकार की अशुद्धता न हो। चण्डी पाठ के दौरान पूर्ण ब्रम्हचर्य का पालन करना चाहिए और वाचिक, मानसिक व शारीरिक रूप से पूरी तरह से स्वच्छता का पालन करना चाहिए। चण्डी पाठ में उच्चारण की शुद्धता
चण्डी पाठ के दौरान सामान्यत: चण्डीपाठ करने वालों को तरह-तरह के अच्छे या बुरे आध्यात्मिक अनुभव होते हैं। उन अनुभवों को सहन करने की पूर्ण इच्छाशक्ति के साथ ही चण्डीपाठ करना चाहिए। कहते हैं कि आप जिस इच्छा की पूर्ति के लिए चण्डीपाठ करते हैं, वह इच्छा नवरात्रि के दौरान या अधिकतम दशहरे तक पूर्ण हो जाती है लेकिन यदि आप लापरवाही व गलती करते हैं, तो इस पाठ का कोई लाभ नहीं मिलता है।