गुप्त नवरात्रि की दुर्गाष्टमी आज, जानिए माता रानी के पूजन का शुभ समय, पूजन विधि व महत्व
मंगलवार, 8 फ़रवरी 2022 (10:55 IST)
Gupt Navratri 2022 Durgashtami: माघ मास की गुप्त नवरात्रि में दुर्गाष्टमी के दिन विशेष पूजा होती है इसके बाद महानंद नवमी की पूजा होती है। दुर्गाष्टमी को अष्टमी, आठम या अठमी भी कहते हैं। माघ मास की अष्टमी को भीमाष्टमी भी कहते हैं। आओ जानते हैं पूजन का शुभ समय, पूजन विधि व महत्व।
पूजन का शुभ समय : भरणी नक्षत्र के बाद कृतिका नक्षत्र रहेगा। चंद्रमा मेष राशि में और सूर्य मकर राशि में विराजमान है। शुक्ल योग के बाद ब्रह्म योग प्रारंभ होगा। दिनभर सर्वार्थसिद्धि योग भी रहेगा। गुप्त नवरात्रि की विशेष पूजा निशिथा मुहूर्त में की जाती है। इस दिन संधि पूजा भी की जाती है।
- शुभ समय सुबह : 10:46 से दोपहर 01:55 तक।
- अभिजीत मुहूर्त : दोपहर 12:13:30 से 12:57:31 तक।
- विजय मुहूर्त: दोपहर 02:04 से 02:49 तक।
- राहु काल : 3:00 से 4:30 तक है जिसमें पूजन नहीं करते हैं।
- अमृत काल : शाम 04:09 से 05:55 तक।
- गोधूलि मुहूर्त: शाम 05:36 से 06:00 तक
- निशिता मुहूर्त: रात्रि 11:46 से 12:38 तक।
गुप्त नवरात्रि पूजन विधि (Gupt Navratri Puja Vidhi) : पूजा दो तरह से होती है सरल पूजा और तांत्रिक पूजा। यहां गृहस्थों के लिए सरल पूजा विधि।
1. गुप्त नवरात्रि की पूजा में शुद्धता व सात्विकता का विशेष महत्व है, इस दिन प्रात:काल स्नान-ध्यान से निवृत हो 10 महाविद्या देवी का स्मरण करते हुए भक्त व्रत एवं उपवास का पालन करते हुए भजन व पूजन करते हैं।
2. नित्य कर्म से निवृत्त होने के बाद माता की मूर्ति या चित्र को लाल या पीला कपड़ा बिछाकर लकड़ी के पाट पर रखें। मूर्ति हो तो उसे स्नान कराएं और यदि चित्र है तो उसे अच्छे से साफ करें। पूजन में धूप, दीप अवश्य जलाना चाहिए। देवताओं के लिए जलाए गए दीपक को स्वयं कभी नहीं बुझाना चाहिए।
3. फिर देवी के मस्तक पर हलदी कुंकू, चंदन और चावल लगाएं। फिर उन्हें हार और फूल चढ़ाएं। फिर उनकी आरती उतारें। पूजन में अनामिका अंगुली (छोटी उंगली के पास वाली यानी रिंग फिंगर) से गंध (चंदन, कुमकुम, अबीर, गुलाल, हल्दी, मेहंदी) लगाना चाहिए।
4. माता लाल चुनरी सहित सोलह श्रृंगार का सामान अर्पित करें। मां की पूजा में लाल रंग का फूल चढ़ाना बेहद शुभ माना जाता है।
5. पूजा करने के बाद प्रसाद या नैवेद्य (भोग) चढ़ाएं। ध्यान रखें कि नमक, मिर्च और तेल का प्रयोग नैवेद्य में नहीं किया जाता है। अंत में उनकी आरती करके नैवेद्य चढ़ाकर पूजा का समापन किया जाता है।
6. दुर्गा चालीसा या दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।
7. घर में या मंदिर में जब भी कोई विशेष पूजा करें तो अपने इष्टदेव के साथ ही स्वस्तिक, कलश, नवग्रह देवता, पंच लोकपाल, षोडश मातृका, सप्त मातृका का पूजन भी किया जाता। लेकिन विस्तृत पूजा तो पंडित ही करता है।
पूजा का महत्व : गुप्त अर्थात छिपा हुआ। इस नवरात्रि में गुप्त विद्याओं की सिद्धि हेतु साधना की जाती है। गुप्त नवरात्रि में तंत्र साधनाओं का महत्व होता है और तंत्र साधना को गुप्त रूप से ही किया जाता है। इसीलिए इसे गुप्त नवरात्रि कहते हैं। इसमें विशेष कामनाओं की सिद्धि की जाती है। साधकों को इसका ज्ञान होने के कारण या इसके छिपे हुए होने के कारण इसको गुप्त नवरात्र कहते हैं। वसंत और शारदीय नवरात्रि गृहस्थों और सामान्य जनों के लिए है परंतु गुप्त नवरात्रि संतों और साधकों को लिए है। यह साधना की नवरात्रि है उत्सव की नहीं। इसलिए इसमें खास तरह की पूजा और साधना का महत्व होता है। यह नवरात्रि विशेष कामना हेतु तंत्र-मंत्र की सिद्धि के लिए होती है। गुप्त नवरात्रि में विशेष पूजा से कई प्रकार के दुखों से मुक्ति पाई जा सकती है। अघोर तांत्रिक लोग गुप्त नवरात्रि में महाविद्याओं को सिद्ध करने के लिए उपासना करते हैं। यह नवरात्रि मोक्ष की कामने से भी की जाती है।