1. जवारे- नवरात्रि के दिनों में जवारों की पूजा का बहुत महत्त्व होता है। शारदीय नवरात्र हो या गुप्त नवरात्र, जवारे के बिना मां दुर्गा की पूजा अधूरी मानी जाती है। घट-स्थापना के साथ ही जवारे हेतु गेहूं बोया जाता है। तत्पश्चात् नौ दिन तक इन अंकुरित गेहूं जिन्हें 'जवारे' कहा जाता है, उनकी पूर्ण श्रद्धाभाव से पूजा-अर्चना की जाती है। सामान्यत: जवारे के आकार के आधार पर ही साधना की पूर्णता व सफ़लता का आकलन किया जाता है। हरे-भरे व बड़े जवारे सुख-समृद्धि व साधना की सफ़लता का प्रतीक माने जाते हैं।
2. हत्थाजोड़ी- नवरात्रि के नौ दिनों में 'हत्थाजोड़ी' की पूजा-अर्चना भी आशातीत लाभ प्रदान करती है। "हत्थाजोड़ी" एक प्रकार की जड़ होती है जिसका आकार मनुष्य के जुड़े हुए हाथों की भान्ति होता है। 'हत्थाजोड़ी' को मां चामुण्डा का साक्षात् स्वरूप माना जाता है। इसमें वशीकरण की अद्भुत शक्ति होती है। सिद्ध हत्थाजोड़ी जिस घर में रहती है वहां सुख-सम्पत्ति का अभाव नहीं रहता। इसे कुछ ख़ास मुहूर्त में ही सिद्ध किया जाता है, नवरात्रि उनमें से एक है।
4. तांत्रोक्त छुआरा- छुआरा सेहत के लिए तो लाभदायक रहता ही है किन्तु पूजा-पाठ में भी छुआरे का विशेष महत्त्व होता है। छुआरे के बीज (गुठली) में सामान्यत: बीच में एक लकीर होती है किन्तु किसी-किसी छुआरे में एक के स्थान पर तीन लकीरें होती हैं। इसे तांत्रोक्त छुआरा कहते हैं। तन्त्र-शास्त्र में इसे कामाख्या देवी की योनि का स्वरूप माना गया है। यह बड़ा ही दुर्लभ होता है।