शारदीय नवरात्र का इतिहास
हमारे शास्त्र के अनुसार भगवान राम ने सबसे पहले समुद्र के किनारे शारदीय नवरात्रों की पूजा की शुरूआत की थी। लगातार नौ दिन की पूजा के बाद भगवान राम ने लंका पर विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से पूजा समाप्त कर आगे प्रस्थान किया था और भगवान राम को लंका पर विजय प्राप्ति भी हुई थी। अतः किसी भी मनोकामना की पूर्ति हेतु मां जगत जननी की पूजा कलश स्थापना संकल्प लेकर प्रारम्भ करने से कार्य अवश्य सिद्ध होंगे।
कलश स्थापना की विधि
कलश स्थापना के लिए सबसे पहले जौ को फर्श पर डालें, उसके बाद उस जौ पर कलश को स्थापित करें। फिर उस कलश पर स्वास्तिक बनाएं उसके बाद कलश पर मौली बांधें और उसमें जल भरें। कलश में अक्षत, साबुत सुपारी, फूल, पंचरत्न और सिक्का डालें।
अखंड दीप जलाने का विशेष महत्व
दुर्गा सप्तशती के अनुसार नवरात्रि की अवधि में अखंड दीप जलाने का विशेष महत्व है। मान्यता है कि जिस घर में अखंड दीप जलता है वहां माता दुर्गा की विशेष कृपा होती है।
लेकिन अखंड दीप जलाने के कुछ नियम हैं, इसमें अखंड दीप जलाने वाले व्यक्ति को जमीन पर ही बिस्तर लगाकर सोना पड़ता है। किसी भी हाल में जोत बुझना नहीं चाहिए और इस दौरान घर में भी साफ सफाई का खास ध्यान रखा जाना चाहिए।