आश्विन शुक्ल प्रतिपदा (29 सितंबर 2019) को ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें।
घर के ही किसी पवित्र स्थान पर स्वच्छ मिट्टी से वेदी बनाएं।
वेदी में जौ और गेहूं दोनों को मिलाकर बोएं।
वेदी पर या समीप के ही पवित्र स्थान पर पृथ्वी का पूजन कर वहां सोने, चांदी, तांबे या मिट्टी का कलश स्थापित करें।
इसके बाद कलश में आम के हरे पत्ते, दूर्वा, पंचामृत डालकर उसके मुंह पर सूत्र बांधें।
कलश स्थापना के बाद गणेश पूजन करें। इसके बाद वेदी के किनारे पर देवी की पीतल, स्वर्ण, चांदी, पाषाण, मिट्टी व चित्रमय मूर्ति विधि-विधान से विराजमान करें।
तत्पश्चात मूर्ति का आसन, पाद्य, अर्ध, आचमन, स्नान, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, आचमन, पुष्पांजलि, नमस्कार, प्रार्थना आदि से पूजन करें।
इसके पश्चात दुर्गा सप्तशती का पाठ दुर्गास्तुति करें।
पाठ स्तुति के बाद देवी दुर्गा मां की आरती कर प्रसाद वितरित करें।
इसके बाद कन्या भोजन कराएं, फिर स्वयं फलाहार ग्रहण करें।
प्रतिपदा के दिन घर के ही जवारे बोने का भी विधान है।
नवमी के दिन इन्हीं जवारों का किसी नदी या तालाब में विसर्जन करना चाहिए। अष्टमी तथा नवमी महातिथि मानी जाती हैं।
इन दोनों दिनों पारायण के बाद हवन करें फिर यथाशक्ति कन्याओं को भोजन कराना चाहिए।
नवरात्रि में क्या करें, क्या न करें : व्रत रखने वाले को जमीन पर सोना चाहिए। ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। व्रत करने वाले को फलाहार ही करना चाहिए। नारियल, नींबू, अनार, केला, मौसमी और कटहल आदि फल तथा अन्न का भोग लगाना चाहिए। व्रती को संकल्प लेना चाहिए कि वह हमेशा क्षमा, दया व उदारता का भाव रखेगा।
इन दिनों व्रती को क्रोध, मोह, लोभ आदि दुष्प्रवृत्तियों का त्याग करना चाहिए। देवी का आह्वान, पूजन, विसर्जन, पाठ आदि सब प्रात:काल में शुभ होते हैं, अत: इन्हें इसी दौरान पूरा करना चाहिए। यदि घटस्थापना करने के बाद सूतक हो जाए, तो कोई दोष नहीं होता, लेकिन अगर पहले हो जाए, तो पूजा आदि न करें।