बनारस। वाराणसी के कलेक्टर और जिला निर्वाचन अधिकारी की वहां के लोगों में एक 'हीरो' की है। उन्होंने इस धार्मिक शहर को व्यवस्थित बनाने के लिए काफी कुछ किया है। इसलिए लोग उन्हें पसंद भी करते हैं, लेकिन पिछले दिनों जो कुछ भी हुआ उससे उनकी छवि न सिर्फ धूमिल हुई बल्कि उन पर पक्षपात के आरोप भी लगे।
दरअसल, प्रांजल यादव उस समय पूरे देश में सुर्खियों में आ गए थे, जब उन्होंने भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी को बेनियाबाग में रैली करने की अनुमति नहीं दी थी साथ ही उन्हें गंगा आरती के लिए भी अनुमति काफी देर से मिली थी, जिसके चलते मोदी ने चुनाव आयोग पर पक्षपात का आरोप भी लगाया था। इस फैसले के खिलाफ भाजपा ने बीएचयू के सामने धरना भी दिया था।
धरने वाले दिन मोदी अपना काम कर गए। वे आए और लोगों को अपना संदेश भी दे गए। काफी भीड़ भी जुटी, चुनाव आयोग पर भी निशाना साध गए। हालांकि माना जा रहा है कि मोदी को सुरक्षा कारणों के चलते रैली की अनुमति नहीं दी गई थी, जिसका भाजपा ने पुरजोर विरोध किया था। भाजपा ने कहा था कि खुफिया एजेंसियों ने ऐसा कोई अलर्ट जारी नहीं किया है। फिर मोदी को रैली की अनुमति क्यों नहीं दी गई।
जिला निर्वाचन अधिकारी के तौर पर प्रांजल यादव ने बाद में राहुल गांधी और केजरीवाल को रैली की अनुमति दे दी। इसके बाद उनकी भूमिका संदेह के दायरे में आ गई, जो लोग उन्हें पहले सही मान रहे थे, अब वे ही उनके फैसले पर अंगुली उठा रहे हैं। उन पर यह भी आरोप लग रहे हैं कि उन्होंने मोदी को रैली की अनुमति मुलायमसिंह यादव के इशारे पर नहीं दी। यह भी बताया जाता है कि प्रांजल मुलायम के करीबी रिश्तेदार हैं।
दूसरी ओर लोग भाजपा कार्यालय पर मारे गए छापे को भी गलत मान रहे हैं। यूपी पुलिस और चुनाव आयोग के अधिकारियों ने कार्यालय पर छापा मारकर चुनाव सामग्री जब्त की थी, लेकिन बाद में कुछ भी गड़बड़ न पाए जाने पर उसे लौटा दिया था।
उल्लेखनीय है कि प्रांजल यादव को बनारस के लोग उनके सख्त फैसलों के लिए पसंद करते हैं। उन्होंने शहर की व्यवस्था सुधारने के लिए अतिक्रमण तोड़े साथ ही शहर की यातायात व्यवस्था को सुचारु बनाने के लिए भी काफी काम किए। ...लेकिन अब बनारस का यह हीरो संदेह के दायरे में आ गया है।