नरेन्द्र मोदी : जकिया जाफरी की असलियत

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वर्ष 2002 के दंगों के बारे में जब भी बात होती है तो यह कहा जाता है कि इन दंगों में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की मिलीभगत रही है और उन्होंने दंगों में पीड़ित पक्ष यानी मुस्लिमों को बचाने के लिए कोई कदम नहीं उठाए थे, लेकिन ऐसे कई उदाहरण हैं जिनसे यह बात साबित होती है कि गुजरात सरकार (मोदी) ने न केवल मुस्लिमों को बचाया वरन उनसे जिस किसी ने भी मदद मांगी, तुरंत ही उसकी मदद की गई।

उल्लेखनीय है कि जिन लोगों ने मोदी से मुस्लिमों को बचाने का आग्रह किया था उनमें तत्कालीन उपप्रधानमंत्री और गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, भाजपा के केन्द्रीय मंत्री शाहनवाज हुसैन और नजमा हेपतुल्ला (उस समय कांग्रेस नेता और अब भाजपा) शामिल रही हैं।

नजमा हेपतुल्ला : जब दंगे चरम पर थे तब मुझे आगा खान के ऑफिस से फोन मिला कि हिंदुओं की आबादी के बीच खोजा मुस्लिमों की एक कॉलोनी है, जिन्हें हिंदुओं से हमलों का डर है। उन्होंने तब आडवाणीजी को फोन किया जो कि उस समय गृहमंत्री थे और तब नजमा कांग्रेस में थीं।

आडवाणी ने मोदी से बात की। कुछ ही मिनटों के अंदर मोदी ने हेपतुल्ला से बात की और कहा कि नजमा बेन, आप चिंता न करें। मैं खुद उन लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करूंगा।...और अपने वादे को निभाते हुए मोदी ने तुरंत ही सेना भेजी और कॉलोनी तथा इसमें रहने वाले किसी व्यक्ति को कोई नुकसान नहीं हुआ।

स्‍थानीय मुस्लिमों ने मुझसे कहा था कि वे चारों ओर से हिंदुओं से घिरे थे। अगर दंगाई लोगों की भीड़ कांकड़िया नाम के इस इलाके में घुस जाती तो यह स्थान दूसरा नरोदा पाटिया बन सकता था।

मेरा अनुभव यह है कि मोदी की जानकारी में जो भी शिकायत लाई गई उसका तुरंत निपटारा उन्होंने किया। मोदी ने बोहरा और खोजा लोगों की बहुत मदद की। वे सैयदना के 100वें जन्म‍ दिन पर उनसे मिलने भी गए थे।

जब आगा खान आए तो उन्होंने मुझे निजी तौर पर धन्यवाद दिया और वे शायद मोदीजी से भी मिले थे। तभी मैंने महसूस किया कि केवल भाजपा के राज्य में मुस्लिम सुरक्षित हैं।

2007 के विधानसभा चुनावों में जब मैंने उनसे कहा कि क्या वे चाहते हैं कि मैं आऊं और उनके लिए चुनाव प्रचार करूं। उन्होंने मुझसे कहा कि आपको गुजरात आने की कोई जरूरत नहीं है। चूंकि आप मेरा रवैया जानती हैं इसलिए आप दिल्ली से ही जो कुछ कर सकती हैं, करें।

 

एसआईटी की रिपोर्ट और जकिया जाफरी की असलियत...आगे पढ़ें...


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सुप्रीम कोर्ट की निगरानी और देखरेख में बने विशेष जांच दल (एसआईटी) ने मोदी के खिलाफ जांच की थी। यह रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में भी पेश की गई थी और इसमें बताया गया था कि कैसे पुलिस और सेना ने दंगाइयों से मुस्लिमों को बचाने के लिए क्या ‍क्या किया था।

इनमें से कुछ पुलिसकर्मियों और सैन्यकर्मियों को भी दंगाई भीड़ के हमले का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने छुड़ाए गए मुस्लिमों को कोई नुकसान नहीं पहुंचने दिया।

गड़बड़ियों और और पक्षपातपूर्ण आचरण के बावजूद पुलिस ने कई स्थानों पर उन लोगों को बचाया जो कि दंगाई भीड़ से घिर गए थे। दंगाई भीड़ से घिरे मुस्लिमों को बचाने के लिए पुलिस और सेना के कई अधिकारियों, कर्मचारियों को अपनी जान तक जोखिम में डालनी पड़ी।

नीचे ऐसे ही कुछ प्रयासों की जानकारी दी जा रही है....
* अहमदाबाद पुलिस ने नूरानी मस्जिद से पांच हजार मुस्लिमों को बचाया था।
* मेहसाणा जिले के सरदारपुरा में 240 लोगों को बचाया गया था और इन्हें सुरक्षित स्थान पर भेजा गया था।
* 450 लोगों को पोरे और नारडीपुर गांवों से बचाया गया था और इन लोगों को सुरक्षित स्थान पर भेजा गया था।
* 200 लोगों को संजोली गांव में बचाया गया था।
* वडोदरा जिले के फतेहपुरा गांव से 1500 लोगों को बचाया गया था।
* तीन हजार लोगों को कावंत गांव से बचाया गया था और उन्हें सुरक्षित स्थानों पर भेजा गया था।

जकिया जाफरी की असलियत : इतना ही नहीं, अहसान जाफरी की गुलबर्ग सोसायटी से उनकी पत्नी जकिया जाफरी समेत 150 लोगों को बचाया गया था और सुरक्षित स्थान पर भेजा गया था। अपनी पहली एफआईआर में जकिया जाफरी ने माना था कि उन्हें पु‍लिस ने बचाया था। लेकिन उन्होंने मोदी और अन्य लोगों के खिलाफ चार वर्ष बाद आरोप लगाए थे जो कि एक आईपीएस अधिकारी श्रीकुमार के बयानों पर आधारित थे।

उल्लेखनीय है कि श्रीकुमार के बारे में एसआईटी की राय थी कि वे एक संदिग्ध व्यक्ति थे, जिन्होंने रिकॉर्ड में गड़बड़ी कर झूठ बोला था और इस कारण से उन्हें एक ‍अविश्वसनीय गवाह घोषित कर दिया गया था।

वस्तानवी के मदरसे के 400 छात्र : इतना ही नहीं, अहसान जाफरी की गुलबर्ग सोसायटी से उनकी पत्नी जकिया जाफरी समेत 150 लोगों को बचाया गया था और सुरक्षित स्थान पर भेजा गया था। अपनी पहली एफआईआर में जकिया जाफरी ने माना था कि उन्हें पु‍लिस ने बचाया था। लेकिन उन्होंने मोदी और अन्य लोगों के खिलाफ चार वर्ष बाद आरोप लगाए थे जो कि एक आईपीएस अधिकारी श्रीकुमार के बयानों पर आधारित थे।

उल्लेखनीय है कि श्रीकुमार के बारे में एसआईटी की राय थी कि वे एक संदिग्ध व्यक्ति थे, जिन्होंने रिकॉर्ड में गड़बड़ी कर झूठ बोला था और इस कारण से उन्हें एक ‍अविश्वसनीय गवाह घोषित कर दिया गया था।

अब सवाल यह उठता है कि मुरादाबाद, भागलपुर, मेरठ और अन्य बहुत से स्थानों पर जो दंगे हुए उनमें उन लोगों को सजा क्यों नहीं हुई, जिन्होंने लोगों की हत्याएं की थीं? नेहरू के शासन काल में भारत में सर्वाधिक दंगे हुए। इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के शासन काल में भी दंगे हुए। इस तरह तो नेहरू, इंदिरा और राजीव गांधी को भी सांप्रदायिक करार दिया जाना चाहिए।

गुजरात में तो दंगे स्वतंत्रता से भी पहले होते रहे हैं, लेकिन प्रचार इस तरह किया जाता है मानो दंगे सिर्फ मोदी के शासनकाल में और गुजरात में ही हुए हों। इसलिए मोदी के शासन काल में होने वाले दंगे सांप्रदायिक थे, लेकिन कांग्रेस के शासन काल में हुए दंगे गैर सांप्रदायिक थे।

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