जीवन में ऐसी कई चीजें होती हैं, जो एक बार खो जाने के बाद दोबारा नहीं मिलती हैं। समय भी ऐसी ही एक चीज है। इसकी कीमत और सही नियोजन द्वारा किसी भी परिस्थिति को अपने वश में किया जा सकता है। आप 24 घंटों में जो कुछ भी करते हैं, वह सब आपकी ऊर्जा, क्षमता, कुशलता और प्रेरणा पर ही आधारित होता है। इसलिए समय के अनुसार इन आधारों का सही तरीके से संयोजन बेहद आवश्यक है।
समय नियोजन से अभिप्राय है अधिक कार्यों को कम समय व आसान तरीके से कार्यान्वित करना, जो आपके व्यक्तित्व को भी प्रभावशाली बनाता है।
80:20 का नियम- अधिकांश लोग अपनी अत्यधिक क्षमता लगाने के पश्चात भी बहुत कम कार्यों को ही संपन्न कर पाते हैं, क्योंकि वह सही दिशा पर ध्यान नहीं देते हैं।
सामान्यतः 80 प्रतिशत भ्रमित क्षमता केवल 20 प्रतिशत कार्यों को ही संपन्न कर पाती है, जबकि 80 प्रतिशत कार्यों को मात्र 20 प्रतिशत दिशा निर्धारित ऊर्जा से संपन्न किया जा सकता है, इसलिए भ्रमित व अनिर्धारित प्रयासों वाले लोग अपना कीमती समय खराब करने के अलावा कुछ भी नहीं कर पाते।
समय नियोजन में बाधाएँ- ऐसे बहुत से कारक हैं, जो आपके समय नियोजन या प्रबंधन में बाधाएँ पहुँचाते हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख कारक हैं-
• अस्पष्ट लक्ष्य। • दिग्भ्रमित कार्यप्रणाली। • ‘नही’ न कह पाने की कमजोरी। • विलंब या टाल-मटोल करने की आदत। • एक समय में कई कार्य करने का प्रयास। • तनाव तथा थकान। • किसी समस्या का हल खोजने से पहले ही उसे छोड़ देना। • अंतरावलोकन।
ऐसे ही बहुत से कारक हैं, जो हमारे समय नियोजन में बाधक बन जाते हैं। मगर इन समस्याओं के निदान के भी कई तरीके हैं।
इन बाधाओं का निदान- इन बाधाओं के निदान के लिए सर्वप्रथम हमें अपने कार्यों को चरणबद्ध तरीके से नियोजित करना होगा। तो चलिए इन चरणों पर जरा गौर कर लें।
• लक्ष्य निर्धारण- लक्ष्य हमारी वह मंजिल है, जिसे पाने के लिए हम सारा ताना-बाना बुन रहे हैं। इसलिए सबसे मुख्य कार्य है हमारे लक्ष्य का पुखता निर्धारण, जिससे कोई भी परिस्थिति हमें हिला न सके।
प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में कुछ निश्चित लक्ष्य स्थापित करने चाहिए, जिससे वह चरणबद्ध तरीके से पा सके। ये लक्ष्य यथार्थवादी होने के सात-साथ सप्ष्ट भी होने चाहिए।
• प्राथमिकता- आवश्यक कार्यों को पहले सम्पन्न करें और इसे संपन्न करने की समय सीमा निर्धारित करके उसे क्रियान्वित करें।
जैसे- कैट के प्रश्नपत्र को ही लें। मान लें कि आपके पास केवल 150 मिनट बचे हैं और आपको तीन वर्गों को समाप्त करना है। प्रत्येक वर्ग के लिए 40 मिनट का निर्धारण करें और बचा हुआ समय अपने पसंदीदा वर्ग को दें।
• निर्धारण- अपनी प्राथमिकताओं को तय करने और समय सीमा निर्धारित करने के बाद एक बार अपनी योजना और कार्यों को निर्धारित अवश्य करें। आपकी क्या प्राथमिकताएँ हैं, किन्हें अभी करना है, किन्हें बाद में किया जा सकता है, किस प्राथमिकता के हल में कितना समय लगेगा, यह सब निर्धारित कर लें। इससे आपका क्रियान्वयन बेहद आसान हो जाएगा।
• ‘नही’ कहना सीखें- जब आप किसी कार्य के लिए ‘नहींट कहेंगे, तो इसका अभिप्राय यह नहीं है कि आप उस जिम्मेदारी से बचना चाह रहे हैं। इसका अभिप्राय यह है कि आप अपने हाथों में लिए हुए कार्यों को समयसीमा के अंतर्गत बखूबी ढंग से निपटाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
• पूर्णतावादी न बनें- कोशिश करें कि आप पूर्णतावादी न बनें। छोटे से छोटे व अनावश्यक कार्यों में पूर्णता लाने में भी कई बार समय नष्ट होता है।
इन सब तथ्यों को अपनाकर अपने समय के नियोजन में सहायता मिल सकती है। याद रहे कि आपका प्रत्येक क्षण बेहद कीमती है, इसलिए इसका नियोजन बेहद आवश्यक है।