मैं मानता हूं कि हिन्दी के वैश्वीकरण में प्रवासी लेखन का सबसे बड़ा योगदान है। भाषा की दृष्टि से देखा जाए तो यह कहा जा सकता है कि विश्व में कितने लोग हिन्दी बोलते हैं, कितने देश हिन्दी बोलते हैं। परंतु सोचिए, अगर आज से सौ-दो सौ साल बाद अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, योरप के लोगों को यह जानना हो कि सौ-दो सौ साल पहले उनकी दुनिया, उनका समाज, उनके लोग कैसे थे और उन्हें यह पता लगे कि यह जानने के लिए उन्हें हिन्दी साहित्य पढ़ना पड़ेगा, तब मैं मानता हूं कि हिन्दी का सच्चा वैश्वीकरण हुआ है। यह सिर्फ प्रवासी लेखक कर रहे हैं, जो आज दुनियाभर में उनके समाज में, उनके निवास कर रहे देश में जो कुछ हो रहा है, वह अनुभव हिन्दी में लिख रहे है और हिन्दी साहित्य को वैश्विक स्तर पर समृद्ध कर रहे हैं।