नॉर्थ कैरोलाइना में सुधा ओम ढींगरा तथा मध्यप्रदेश के लेखक पंकज सुबीर की कहानी संग्रह का विमोचन

चित्र-हिमांशु श्रीवास्तव
रिपोर्ट- रेखा भाटिया 
 
17 मार्च 2024 के दिन नॉर्थ कैरोलाइना साहित्यिक मंच, अमेरिका के लिए एक अविस्मरणीय दिन बन गया। इस साहित्यिक ग्रुप की संस्थापक हिंदी की जानी-मानी साहित्यकार, कहानीकार, संपादक सुधा ओम ढींगरा के मोर्रिस्विल, अमेरिका में स्थित निवास स्थान पर इस ग्रुप की मासिक गोष्ठी का आयोजन संपन्न हुआ। कवि मित्र पूरे जोश-उल्लास के साथ समय पर गंतव्य पर आ पहुँचे। गोष्ठी की संचालक सुधा जी ने सबका स्वागत किया और ग्रुप की नई सदस्य सुषमा उपाध्याय को सरस्वती वंदना के लिए मंच पर आमंत्रित किया।
 
उसके बाद मंच पर ममता त्यागी को आमंत्रित किया गया। उनकी कविताएं में बयान था उस दर्द का, जो त्रास देता है जड़ से उखड़ कर नई मिट्टी में खुद को जमाने का  लेकिन अंत नव परिवर्तन का स्वागत करना। ममता जी प्रेम पर बहुत सुन्दर और नैसर्गिक कविताएं लिखती हैं। सुधा जी के संचालन का नॉर्थ कैरोलाइना साहित्यिक मंच का हर सदस्य कायल है। सौंधा संचालन सदा सुगंधित और ज्ञानवर्धक होता है जिसमें साहित्य के भिन्न समय काल का इतिहास, विभिन्न साहित्यकारों की और लेखन की बारीकियों की विस्तृत जानकारी मिलती है। 
 
अब मंच पर आमंत्रित थी कवि गीता कौशिक 'रत्न' जो भावों में नव सपनों को पकड़ कर चलती हैं। फागुन पर उनका दोहा, 'फागुन खड़ा द्वार पर, सज गई बंदनवार। धरती गदराई खड़ी, कर-सखि मंगलाचार। फ़ाग के उल्लास में उनकी कलम से तीन कविताएं निकल प्रेम का ताना-बाना बुन गईं।
 
कवि उषा देव जिनके मधुर गीत और ग़ज़लें बहुत मंत्रमुग्ध करते हैं। उनकी पहली भावुक कविता में प्रेमी के दर्द और उदासी को दूर करने के लिए किसी भी हद तक न्योछावर हो जाने को आतुर प्रेमिका की पीड़ा थी और उसके ठीक विरोधाभास में दूसरी रचना थी हरियाणा के एक लोक गीत पर आधारित हास्य रंग में गीत प्रस्तुत किया।  कवि बिंदु सिंह ने प्रेम के रंगों से सराबोर अपनी छोटी-छोटी कविताओं से प्यार की विविध परिभाषाओं को परिभाषित किया, 'जुदाई से अश्क़ों के पैमाने भर जाते हैं, आखिर प्यार किसे कहते हैं।' 
 
अब बारी थी नहले पे दहला वार करते कवि चरणजीत लाल की, 'हसीना कहो या सुंदरी, दिलरुबा कहो या मन मोहिनी, पुरकशिश कहो या आकर्षक कैसे भी कहो!'
 
रचनाकार कुसुम नैपसिक ने अपना व्यंग्य पढ़ा 'जोहन की कहानी' जिसमें भारत की शिक्षा प्रणाली के बारे में बात की गई। एक अध्यापक जिस पर लोग सबसे ज़्यादा भरोसा करते हैं अगर वही अपना काम ठीक से न करे तो क्या होता है। यही तरीक़ा कई अध्यापक आज भी करते हैं, बहुत सशक्त यह व्यंग्य था। 
 
कवि सुरेंद्र कौशिक 'निर्मोही' ने चंद ग़ज़लें पेश की, 'चैन की वो नींद मेरे ख़्वाब आकर ले गए। वो हमारा दिल न जाने कब चुरा कर ले गए।' ज़रा गहराई पर ध्यान दें, 'बला एक ऐसी तूफ़ान-ए-मोहब्बत। नज़र आएंगे ख़ूब ग़म खाने वाले।' उनकी ग़ज़लों के रंग महफ़िल पर कुछ ऐसे चढ़े कि संचालक सुधा जी ने टक्कर के शायर-फ़नकार अफरोज़ ताज़ को आमंत्रित किया।

हँसी और त्योहारों के ख़ुशनुमा उल्लास में अब महफ़िल अपने शबाब पर थी। 'ऐ आईने तू उसको दिखाता ही नहीं है, एक शख्स मेरे अंदर मुझसे भी हसीन है', 'घर के चक्कर मारे रावण बार-बार और विधवा राखे पादुका पुरुष की अपने द्वार', 'भरत लिए जब पादुका राम के नंगे पांव और वृक्षों में थी चांव-चांव मैं ही बनूं खड़ाऊ।' कवि अफरोज़ ताज़ ने कई दोहे भी प्रस्तुत किए।
 
अगली रचनाकार रेखा भाटिया ने दो लघु कथाएं 'हुनर 'एवं 'परीक्षा की घड़ी' पढ़ी। 'ईर्ष्या और स्वार्थ दोस्ती के विश्वास को क्षति पहुँचाता हैं कोई त्रासदी अमूल्य जीवन से अधिक मूल्यवान नहीं होती' रेखा भाटिया की लघु कथाओं का तात्पर्य था।
 
कवि विपिन सेठी 'समंदर 'ने कुछ शेर सुनाए फिर पत्नी के खौफ़ से मार खाए एक प्रेरित हास्य कवि की आपबीती पर हास्य कविता सुनाई, खूब हास्य रस का रंग जमाया। एक कवि की कल्पना की उड़ान देखिए,' यूं तो हज़ारों चर्चे है बस्ती में मेरी ख़ुद्दारी के, जब जब तुमसे मिलता हूँ, तुम हो जाता हूँ।',

'चुनावी हिंसा ने बीस-पचास लोगों का सिर क्या खोल दिया तुम सालों ने सरकार के ख़िलाफ़ ही हल्ला बोल दिया।'' उन्होंने तीन रचनाएं साझा की। 
 
कवि सौरभ सोनी ने बसंत के आगमन की तुलना एक नवजात शिशु के जन्म से की, 'पत्तों का है ढेर लगा, कोई यहाँ गिरा कोई वहाँ उड़ा', 'देखा है नवजात के जनम का, वो रक्त रंजित मंजर?'' शब्दों का सुंदर ताना-बाना लिए दो सुंदर रचनाएं प्रस्तुत कीं । 
    
कवि मीरा गोयल ने अध्यात्म से ओतप्रोत मधुर गहरी अर्थपूर्ण कविता,'मैं कौन हूँ, अमरत्व के लिए न्योछावर जीवन या हर पल जीने की साध, निश्छल मन अमरत्व से रिते... पर मैं बिन लक्षण भी सम्पूर्ण हूँ' की प्रभावकारी प्रस्तुति दी। मयूरी रमन ने पूर्ण ऊर्जा के साथ तीन कविताओं 'रिश्ते', 'यह इत्तफ़ाक़ नहीं', 'हुंकार' का निर्वाह किया। एक झलक प्रस्तुत है, 'मेरी तहज़ीब को मेरी कमज़ोरी ना समझ, यूं आंखें झुका जो सब सुन लेती हूँ, इसे मेरी खामी ना समझ।'
 
शायर जॉन कॉडवेल की रचनाओं में बहुत विविधता के रंग नज़र आए। उनकी अनुवादित रचनाओं का स्तर बहुत उच्च और श्रेष्ठतर होता है। उन्होंने कुछ दोहे भी प्रस्तुत किए। 
 
डॉ.जगदीश मुजराल जी ने दो कविताएं प्रस्तुत की, एक देशप्रेम के रंग में थी और दूसरी हास्य में। कवि हिमांशु श्रीवास्तव ने एक भावुक कविता सुनाई, 'इंसान चले जाते हैं पर याद छोड़ जाते हैं।' मौत पर खैर किसी का क्या बस है! दूसरी रचना एक प्रसंग पर आधारित थी जब उद्धव गोपियों को कृष्ण के जाने के समय पर ज्ञान समझाते हैं, बृजभाषा में लिखी कवि जगन्नाथ दास रत्नाकर की रचना प्रस्तुत की।
   
आराधना अग्रवाल ने एक संदेश से भरी अर्थपूर्ण हास्य कविता 'हम बाबा बन जाएं' प्रस्तुत की, 'जिसका काम उसी को साझे, दूजे की थाली में हमको घी लगता है ज्यादा।' इन सभी सुंदर, सुघड़ और सार्थक रचनाओं की प्रस्तुतियों के बाद कार्यक्रम के अंत में मंच के दो वरिष्ठ सदस्यों की पुस्तकों के विमोचन की घोषणा के साथ ही आनंद से प्रफुल्लित उपस्थित जन समुदाय प्रसन्नता से झूम उठा।

इस मौके पर कार्यक्रम की संचालक सुधा ओम ढींगरा ने साहित्यकार ममता त्यागी के लेखन पर प्रकाश डाल चंद शब्द कहे तत्पश्चात् ममता जी का शिवना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित दूसरा कहानी संग्रह 'डोर अंजानी सी' का विमोचन किया गया। 
 
प्रसिद्ध साहित्यकार, संपादक, कथाकार, समाज सेविका, अभिनेत्री और निर्देशक डॉ. सुधा ओम ढींगरा के लेखन पर प्रवासी लेखक रेखा भाटिया ने प्रकाश डाला। डॉ. सुधा ओम ढींगरा का नया कहानी संग्रह 'चलो फिर से शुरू करें', जिसे शिवना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया है उसका विमोचन किया गया।  
 
इसी मौके पर वरिष्ठ लेखक पंकज सुबीर का शिवना प्रकाशन द्वारा ही लाया गया नया कहानी संग्रह 'ज़ोया देसाई कॉटेज' का विमोचन भी किया गया। सुधा जी ने पंकज सुबीर जी के लेखन पर प्रकाश डाला। मयूरी रमन ऐसे मौके पर केक लेकर आई थीं और उसे कटा गया। तीन विमोचन की ख़ुशख़बरियों ने सभी में बहुत उल्लास भर दिया  बधाइयों, शुभकामनाओं और धन्यवाद के दौर के साथ जलपान और अल्पाहार के बाद इस अविस्मरणीय गोष्ठी का सुखद समापन हुआ। 
 
यूके से आए डॉ. नयन नारायण और डॉ. पूनम नारायण जो श्रोता बन इस गोष्ठी में पहुंचे थे।

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