यदि आप पुरानी दिल्ली गए और आपने चांदनी चौक के स्वादिष्ट व्यंजनों का आनंद न उठाया तो आपकी यात्रा समझो अधूरी ही रह गई! चांदनी चौक की गलियां खाने-पीने के लिए बहुत प्रसिद्ध हैं। दिल्ली ही नहीं देश-विदेश से भी खाने के शौक़ीन यहाँ आकर अपना शौक पूरा करते हैं। दही-भल्ले, चाट-पकौड़ी, जलेबी, फालूदा आइसक्रीम आप जो चाहें खाने को मिल सकता है।
1870 के दशक से, जब यहां परांठों की दुकान खुली थी, तभी से यह स्थान 'खाने के शौकीनों' को विशेष प्रिय है। इस गली में भारत की कई नामी हस्तियां आ चुकी हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पं. जवाहरलाल नेहरू और उनके परिवारजन-इंदिरा गांधी और विजय लक्ष्मी पंडित तक यहां आ चुके हैं और यहां के परांठों का स्वाद ले चुके हैं। यहाँ के परांठे लालबहादुर शास्त्री तक ने खाकर सराहे हैं। नियमित रूप से आने वाली हस्तियों में जय प्रकाश नारायण और अटल बिहारी वाजपेयी का नाम भी सम्मिलित रहा है।
यद्यपि इस गली की कई मूल दुकानें अब नहीं रहीं। मूल दुकानों में से कुछ ही शेष हैं। इनमें सबसे पुरानी दुकान 1872 में स्थापित, पंडित गया प्रसाद-शिवचरण की है। अन्य में पंडित कन्हैयालाल-दुर्गाप्रसाद (1875) और पंडित बाबूराम देवीदयाल (1886) की दुकानें आती हैं। परांठों वाले पीढ़ियों से अपने परांठों के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं, आज इन दुकानों को उनकी छटी-सातवीं पीढ़ी संभाले हुए है।
यहां परांठों को तवे पर सेंका नहीं जाता, बल्कि परांठों को लोहे के खास कड़ाहीनुमा बर्तन में देसी घी में तला जाता है। इन परांठों की यह विशेषता है कि एक-दो दिन तक खराब नहीं होते। परांठे तले होने पर भी बहुत हल्के जान पड़ते हैं और आप अपनी औसत खुराक से अधिक खा लेते हैं। यहां परांठों पुदीने की चटनी, केले व इमली की चटनी, अचार तथा आलू की सब्जी के साथ परोसे जाते हैं।
मेन्यू बोर्ड पर लिखी परांठों की ऐसी-ऐसी किस्में पढ़ने को मिलेंगी जो आपने पहले न कभी देखी होंगी, न सुनी होंगी। यहाँ आलू, गोभी, मूली, मटर के परांठे तो मिलते ही हैं, इनके अतिरिक्त काजू, बादाम, किशमिश, पापड़, मसूर की दाल, टमाटर, खुर्चन केले, करेले, भिंडी, पुदीने और रबड़ी तक के परांठे उपलब्ध हैं।