चंद्रशेखर आजाद का नाम भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास में अमिट है। ऐसा निडर, सहज और निष्कलंक चरित्र वाला इतिहास में कोई दूसरा दिखाई नहीं पड़ता। एक बार कह दिया तो फिर करके दिखाने वाले 'पं. चंद्रशेखर आजाद' को बचपन में एक बार अंग्रेजी सरकार ने 15 कोड़ों का दंड दिया तभी उन्होंने प्रण किया कि वे अब कभी पुलिस के हाथ नहीं आएंगे। वे गुनगुनाया करते थे :-
'दुश्मन की गोलियों का, हम सामना करेंगे।
आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे।।'
इसी शेर को कभी-कभी बदलकर यूं भी कहा करते थे:
'दुश्मन की गोलियों का, हम सामना करेंगे।
आजाद ही रहे हैं, आजाद ही मरेंगे।।'
सनद रहे कि 'आजाद' के अतिरिक्त काकोरी कांड के सभी क्रांतिकारियों को पकड़ लिया गया था। बस, 'आजाद' ही आजाद घूमते रहे। वे अपनी अंतिम सांस तक सरकार के हाथ नहीं आए।
शहीद अशफाक उल्लाह खां का एक काफी प्रसिद्ध शेर है:
'शहीदों के मजारों पर जुड़ेंगे हर बरस मेले,
वतन पे मरने वालों का यही बाकी निशां होगा।'
उपरोक्त शेर मूल शेर है, जो अधिकतर गलत ढंग से पढ़े/लिखे जाने का चलन है:
'शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले
वतन पे मरने वालों का यही बाकी निशां होगा।'
[मेले चिताओं पर नहीं लगते। मजार/समाधि या स्मारक पर ही संभव है]
इसी उपरोक्त शेर को भी आजाद थोड़ा बदलकर अक्सर इस तरह कहा करते थे:
'शहीदों की चिताओं पर पड़ेंगे खाक के ढेले।
वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा।।'
पता नहीं 'आजाद' ने किस मनोदशा में यह शेर बदलकर कहा होगा! क्या यह शेर मजाक में कहा गया था? वे क्षुब्ध थे? या उन्होंने भविष्य को पहचानते हुए उसका विश्लेषण कर छोड़ा था? उन्होंने इसे जिस भी मनोदशा में कहा हो, लेकिन आज के हालात देखें तो शहीदों को सचमुच 'खाक के ढेलों तले दबा दिया गया' लगता है। आज देश पर शहीद हुए क्रांतिकारियों को कैसा सम्मान मिल रहा है?
आजाद के क्रांतिकारियों साथियों में कई लेखक, गायक व कवि भी थे। 'आजाद' को गाना गाने या सुनने का शौक नहीं था लेकिन फिर भी वे कभी-कभी कुछ शेर कहा करते थे। उनके साथियों ने निम्न शेर आजाद के मुंह से सुनने का उल्लेख किया है:
'टूटी हुई बोतल है, टूटा हुआ पैमाना।
सरकार तुझे दिखा देंगे, ठाठ फकीराना।।'
उपरोक्त शेर शहीद रामप्रसाद 'बिस्मिल' के शेर का बदला हुआ रूप है।
आजाद द्वारा लिखी उनकी रचना भी उल्लेखनीय है:
'मां हम विदा हो जाते हैं, हम विजय केतु फहराने आज,
तेरी बलिवेदी पर चढ़कर मां, निज शीश कटाने आज।
मलिन वेष ये आंसू कैसे, कंपित होता है क्यों गात?
वीर प्रसूति क्यों रोती है, जब लग खंग हमारे हाथ।
धरा शीघ्र ही धसक जाएगी, टूट जाएंगे न झुके तार,
विश्व कांपता रह जाएगा, होगी मां जब रण हुंकार।
नृत्य करेगी रण प्रांगण में, फिर-फिर खंग हमारी आज,
अरि शिर गिराकर यही कहेंगे, भारत भूमि तुम्हारी आज।
अभी शमशीर कातिल ने, न ली थी अपने हाथों में।
हजारों सिर पुकार उठे, कहो दरकार कितने हैं।।'
आजाद के ठाठ तो फकीराना थे ही, उनका जीवन सादा पर विचार उच्च थे। कवि श्यामपाल सिंह ने आजाद के बारे में लिखा है:
'स्वतंत्रता रण के रणनायक अमर रहेगा तेरा नाम,
नहीं जरूरत स्मारक की स्मारक खुद तेरा नाम।
स्वतंत्र भारत नाम के आगे जुड़ा रहेगा तेरा नाम,
भारत का जन-मन-गण ही अब बना रहेगा तेरा धाम।।'
आजाद भारतीय क्रांतिकारियों में बेजोड़ हैं, और बेजोड़ ही रहेंगे!
*लेखक इंटरनेट पर विश्व की सबसे पहली हिन्दी पत्रिका 'भारत-दर्शन' के संपादक हैं।'