COVID-19 Lock Down पर कविता : चलो घर बैठ रिश्ते निभाते हैं
चलो घर बैठ रिश्ते निभाते हैं,
ना तुम जल्दी ऑफ़िस जाना,
ना तुम देर से घर आना,
घर से ही काम कर काम चलाना !
सुबह मैं देर तक सोती रहूं,
चाय बना तुम करना सूरज का स्वागत,
चिड़ियों को दाना डाल पानी रखना,
मुझे जगाने की प्यार से कोशिश करना !
घड़ी की सुइयां छेड़ेंगी हर सुबह,
लंबी रातों से उकता हर रोज़ सबेरे,
अलार्म बंद कर भूल जाना उठाना,
सपनों की बतिया दोपहरी में सुनाना !
पुरानी तस्वीरों का खोल पिटारा,
यादों में उलझ करेंगे हिसाब,
चलो गलतियों की मांगे माफ़ी,
आनेवाली यादें बनाएं खूबसूरत !
उल्टी गंगा बहाएं घर बना गढ़,
आधे-आधे बांट लें अधिकार,
आधे कर्तव्य निभाएं एकदूजे के,
अर्द्धनारीश्वर बन पूरक दूजे के !
थोड़े तुम थोड़ा मैं बदलूंगी,
बाहरी हवा खतरनाक है,
भीतर की हवा प्राणवायु,
जीतना है जंग शुद्ध रख इसे !
सुनो अब तक घर मैंने संभाला,
अनिश्चित समय काल है अभी,
घर में मेहमान नहीं साथी बनोगे,
पुरानी उलझनें फिर कभी सही !
चलो घर बैठे रिश्ते निभाते हैं,
पुराने रिश्ते नए समझ अपनाएं,
कोरोना के कहर से बचाकर,
एक मौका मिला है सदुपयोग करें !
जोड़ ह्रदय से हृदय के रिश्ते,
हमारे रसायन को दें नई संज्ञा,
जोड़ें रिश्ते प्रकृति से, अपनों से,
भीतर प्रकाश से जो भूले हम !
कलयुग का कदापि अंत हो रहा,
इस तरह सतयुग का करें शुभारंभ,
सुधार कलयुगी गलतियां जो की थी,
रिश्तों से साकार भविष्य करें सृजन !