दिल्ली शहर इतना प्रदूषित (Polluted) हो चुका है कि वहां पर एक दिन रहकर सांस लेना यानी दस सिगरेट पीने के बराबर नुकसान करता है- ऐसा TV चैनल वाले अक्सर बताते रहते हैं, एक बार तो वे लोग 25-30 सिगरेट बताने लगे थे। वहां पर लोग कोरोना काल से पहले से ही मास्क पहन रहे हैं। दिल्ली में आज जो बच्चा पैदा होता है और यदि वहीं पला-बढ़ा तो वह अपनी 'वास्तविक मृत्यु तिथि' से 25-30 साल पहले ही मर जाएगा, यानी औसतन 75-80 साल जीने वाला इंसान यदि दिल्ली में ही रहा तो वह 50-55 साल की उम्र में ही चल बसेगा। सिर्फ इसलिए कि वह दिल्ली की जहरीली- प्रदूषित वायु रोज अपने फेफड़ों में भर रहा है। और उसी प्रदूषित दिल्ली में लगभग 1000 करोड़ रुपए की लागत से केंद्रीय सरकार नया संसद भवन बनवा रही है। इसका शिलान्यास व भूमिपूजन भी हो चुका है।
भारत भर के सैकड़ों प्रदूषण-मुक्त सुंदर स्थानों को छोड़कर जहरीली वायु से भरी दिल्ली में नया संसद भवन बनना महान दुखद है। केंद्र सरकार को केवल नया संसद भवन और अपनी राजधानी चाहिए तो उसके लिए देश भर में सैकड़ों प्रदूषण मुक्त स्थान उपलब्ध हो सकते हैं। आश्चर्य है कि अभी तक इसका किसी प्रसिद्ध नेता, व्यक्ति, संस्था या राजनैतिक पार्टी विरोध भी नहीं कर रही है।
जो नया संसद भवन बेहद महंगी दिल्ली में कोई 1000 करोड़ रुपए की लागत से बनेगा, वह शायद अन्यत्र किसी rural area, किसी प्रदूषण मुक्त सुरम्य स्थान पर इससे आधी रकम में ही बनकर तैयार हो जाएगा और शेष 500 करोड़ में संसद सदस्यों के निवास स्थान, प्रधानमंत्री और अन्य मंत्रियों के आवास और दफ्तर भी बनकर तैयार हो जाएंगे।
चूंकि मैं भारत में छत्तीसगढ़ से हूं, यहां के एक प्रदूषण मुक्त सुरम्य स्थान की मैं भी यहां पर जानकारी देना चाहता हूं, यानी जहां पर 'नया संसद भवन व देश की राजधानी' सभी कुछ 1000 करोड़ रुपए में आराम से बन सकते हैं। और वह स्थान है सरगुजा जिला मुख्यालय अंबिकापुर के पास 'मैनपाट' नामक रमणीक हिल स्टेशन पर। मैनपाट में प्रदूषण का नामोनिशान नहीं है, न ही वहां पर कोई ट्रैफिक जाम की समस्या रहती है। वह हरा-भरा सुंदर-सा हिल स्टेशन है। जो छत्तीसगढ़ का 'शिमला' भी कहलाता है।
यहां बारहों महीने ठंड रहती है। मैनपाट पहुंचने का रास्ता भी बेहद सुरम्य और नयनाभिराम है। फिलहाल वहां जमीन भी बेहद सस्ती है इसलिए बिल्डर लोग वहां नई-नई कॉलोनियां बनवा रहे हैं। साल भर पहले तक 15 लाख रुपए में वहां दो बेडरूम दो बाथरूम के व 20 लाख रुपए में तीन बेडरूम दो बाथरूम के नए घर मिल रहे थे। वहां के (ठहरने वाले) होटल्स भी बेहद साफ-सुथरे व फिलहाल दिल्ली की तुलना में बेहद-बेहद सस्ते हैं। गत वर्ष मैं वहां पर्यटन के लिए गया था। होटल में सुबह अपने कमरे की खिड़की खोलो तो ताजी व ठंडी हवा तथा दूर तक फैले सुंदर नयनाभिराम दृश्य मन को मोह लेते हैं।
मैनपाट में जंगलों के बीच-बीच में बड़े-बड़े विशाल मैदान भी हैं, जहां संसद भवन, संसद सदस्यों के घर, प्रधानमंत्री निवास, कैबिनेट के निवास, एयरपोर्ट आदि बनाए जा सकते हैं। देश के संसद सदस्यों और केंद्र सरकार से संबंधित व्यक्तियों के सिवाय किसी अन्य व्यक्ति को राजधानी में बसने की अनुमति दी भी नहीं जानी चाहिए। देश की 'वास्तविक राजधानी' अन्य लोगों के लिए मात्र एक दर्शनीय व पर्यटन स्थल भर होना चाहिए। राष्ट्रपति और विदेशी दूतावासों को दिल्ली में ही रहने दें क्योंकि सरकार के संचालन में इनकी कोई भूमिका भी नहीं होती।
जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ फिल्मी दुनिया की 'राजधानी' को मुंबई से उत्तरप्रदेश ले जा सकते हैं (उन्होंने पहल तो शुरू कर ही दिया है और आशा हैं कि वे इसमें सफल भी होंगे) तो प्रधानमंत्री मोदी भारत की राजधानी को देश के किसी प्रदूषण मुक्त सुरम्य स्थान पर क्यों नहीं ले जा सकते? सारा देश उनके इस निर्णय का तहेदिल से स्वागत ही करेगा।
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)