ख़याल थे विशाल समंदर की गहराइयों की तरह
ऐसा लगा कि पहुंच गए हम अगले जनम तक
और लम्बी गुफ्तगू करते रहे हम आपसे लगाव में
जैसे लहरें बातें करते आईं हैं किनारों से आज तक
दिवा स्वप्न था बैठे थे पास पास और मूंदी (बंद) आंखों से
झकझोर दी किसी आहट ने सपनो की वो दुनिया
टूटा सपना, जगे अचानक और बोल उठा दिले नादां
सदा एक हो कर हम रहें- क़यामत से क़यामत तक।
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