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हरिबाबू बिन्दल
तुम ऐसी प्रेयसी हो
यादों में आ आकर, करती मन उद्वेलित
सागर की लहरों से, तट हो जैसे विचलित
कविता लिख देने को, तुम प्रेरित करती हो
तुम ऐसी प्रेयसी हो।
तुम में कुछ ऐसा है, है नहीं किसी के पास
हो सात समुन्दर पार, फिर भी जैसे हो पास
सूरज की किरणों-सी, तुम आभा बिखेरती हो
तुम ऐसी रूप-सी हो।
मुझको कुछ बंधन हैं, तुमको भी जग बंधन
तुम में मुझसे फिर भी, कुछ अद्भुत संवेदन
मेरे मन की वीणा को, झंकृत कर देती हो
तुम ऐसी देवी-सी हो।
साभार- गर्भनाल