कानपुर में जन्म। कानपुर विवि से एम.ए. और बुंदेलखण्ड विवि से पी-एच.डी.। भारत में 1983 से 1998 तक अध्यापन कार्य किया। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कहानियाँ, लेख एवं कविताएँ प्रकाशित। मई 1998 में अमेरिका पहुँचीं और 2003 में वे एडल्ट एजुकेशन में शिक्षण से जुड़ गईं। सम्प्रति वे वेसलियन विश्वविद्यालय, कनैक्टिकट में हिंदी प्राध्यापक हैं।
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ये शिकवे, ये गिले न होते गर तुम बेगैरत न होते
ये दूरियाँ, ये मजबूरियाँ न होतीं गर तुम बेगैरत न होते
ये तन्हाइयाँ, ये रुसवाइयाँ न होतीं गर तुम बेगैरत न होते
ये परिस्थितियाँ, ये खुदगर्जियाँ न होतीं गर तुम बेगैरत न होते
खुशियों से खनकता घर-आँगन होता गर तुम बेगैरत न होते
अश्कों से बयाँ ये दास्ताँ न होती गर तुम बेगैरत न होते।