शादी : चार समीकरण

- रचना श्रीवास्तव
ND

एक
तुमसे
एक कप चाय माँगी
खाना खाया
बच्चों को दुलारा
तुमको डाँटा
और शरीर जोड़ कर सो गया
तुम्हारा मन वहीं तकिए के ऊपर सुलगता रहा
और मेरा मन?
ये है शादी

दो
तुमने सामान की एक फेहरिस्त मुझको थमाई
बच्चों की ढेर-सी शिकायत बताई
चाय, खाने की सामाजिक रीत निभाई
और सो गई
मेरा मन सोचता रहा, और जागता रहा
और तुम्हारा?
ये है शादी...

तीन
तुमने मुझे प्यार से टिफिन थमाया
और दिन भर सोचती रह‍ी मेरी गतिविधियाँ
कामना में रही तुम मेरी सफलता की
इंतजार किया सूरज के बुझने का
ताकि मैं उदित हो सकूँ
तुम्हारी शाम में
यह है शादी...

चार
मैंने सुबह तुमसे विदा ली
और छोड़ गया अपना अस्तित्व
अपनी चंचलता और निजी सानिध्य
तुम्हारे आँचल में
दिन भर एक नए मुखौटे के साथ
तुम्हें याद रखकर भी भूला रहा
गोधुली में जब लौटा
तुम्हारी चाय में घुल गया
अपराजित मन, थकन और क्लान्ति
और मैं फिर महकने लगा
ये है शादी।

साभार- गर्भनाल