स्वर्णिम उपलब्धियों से भरा है सफर

सोमवार, 11 अगस्त 2008 (23:42 IST)
करोड़ों भारतीयों के अर्से पुराने सपने को साकार करके बीजिंग ओलिम्पिक खेलों की निशानेबाजी स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रचने वाले अभिनव बिंद्रा के खेल जीवन का सफर भी स्वर्णिम उपलब्धि से भरपूर है।

भारत के लिए व्यक्तिगत स्पर्धा में पहला स्वर्ण जीतने वाले अभिनव ने एक ऐसे समय यह उपलब्धि हासिल की है जब भारत के लोग दिग्गज कहे जाने वाले निशानेबाजों की नाकामी से मायूस हो चुके थे।

अभिनव ने निराशा के अंधेरे में सुनहरी चमक लाकर करोड़ों भारतीयों के मुरझाए चेहरों पर स्वर्णिम मुस्कान बिखेर दी। उनकी यह उपलब्धि क्रिकेट के दबदबे वाले देश में खेलों के परिदृश्य को बदल डालेगी, ऐसी सबकी आशा है।

28 सितम्बर 1983 को उत्तरप्रदेश के देहरादून में जन्मे अभिनव का खेल जीवन भी स्वर्णिम उपलब्धियों से परिपूर्ण है। महज 17 साल की उम्र में उन्होंने वर्ष 2000 में हुए सिडनी ओलिम्पिक में हिस्सा लिया था। उस समय वह ओलिम्पिक में हिस्सा लेने वाले सबसे कम उम्र के निशानेबाज थे।

चंडीगढ़ के 25 वर्षीय अभिनव बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हैं। निशानेबाज होने के साथ-साथ वह एक कामयाब व्यवसायी भी हैं। वह अभिनव फ्यूचरिस्टिक्स फर्म के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं और खेल की व्यस्तता के बीच उन्होंने मास्टर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन (एमबीए) की डिग्री भी हासिल की है।

हालाँकि उनका पहला प्यार निशानेबाजी ही है और उनके खेल जीवन का शानदार सफर इसे बयान करता है। सटीक निशाना लगाने की अभिनव की काबिलियत को सबसे पहले लेफ्टिनेंट कर्नल जे.एस. ढिल्लन ने पहचाना और वह अभिनव के पहले कोच बने। अपना सफर शुरू करने के बाद इस निशानेबाज ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा।

संभ्रान्त परिवार में पले-बढ़े अभिनव ने वर्ष 1998 में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में हिस्सा लिया1 उस वक्त उनकी उम्र महज 15 साल थी1 उन्होंने वर्ष 2001 में म्यूनिख में हुए जूनियर निशानेबाजी विश्वकप में 600 में से 597 अंक हासिल करके नया विश्व रिकॉर्ड कायम करते हुए कांस्य पदक जीता था।

अभिनव ने वर्ष 2001 में यूरोपियन सर्किट की विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय स्पर्द्धाओं में छह स्वर्ण पदक जीते। खेल के प्रति अपने असाधारण समर्पण के लिए उन्हें उसी साल देश के सबसे बड़े खेल पुरस्कार 'राजीव गाँधी खेल रत्न' से नवाजा गया। उसके बाद वर्ष 2002 में अभिनव ने मैनचेस्टर में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में उन्होंने इतिहास रचते हुए स्वर्ण पदक जीता।

अभिनव वर्ष 2004 में हुए एथेंस ओलिम्पिक खेलों में ओलिम्पिक का रिकॉर्ड तोड़ने के बावजूद पदक नहीं जीत पाए थे। हालाँकि उन्होंने अपने शानदार सफर को आगे बढ़ाया और 24 जुलाई 2006 को वह एक और उपलब्धि हासिल करते हुए जागरेब में हुई विश्व चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय बन गए1 इससे पहले डॉ. कर्णीसिंह ने भारत के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए वर्ष 1962 में विश्व चैम्पियनशिप में रजत पदक जीता था।

अभिनव को बेहद शांत दिमाग का निशानेबाज माना जाता है और यह उनके नजरिये में भी झलकता है। बीजिंग ओलिम्पिक में अपना सफर शुरू होने से एक दिन पहले उन्होंने साफगोई से कहा था कि वह खेलों के महाकुम्भ की चुनौतियों को बाखूबी समझते हैं और वह अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने की कोशिश करेंगे।

अभिनव ने कहा था कि किसी भी तैयारी या प्रशिक्षण को सम्पूर्ण नहीं कहा जा सकता। सुधार की गुंजाइश हर वक्त रहती है मगर वह अपने सारे संदेहों को दरकिनार करके आत्मविश्वास के साथ मुकाबले में उतरेंगे। अभिनव जब ये अल्फाज कह रहे थे तब तक समय की कलम उनकी स्वर्णिम उपलब्धि की इबारत लिख चुकी थी

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