अंधविश्वास के बदलते फैशन: ओशो

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हर युग के अपने अंधविश्वास होते हैं। अंधविश्वास का भी फैशन होता है। ध्यान रहे, अंधविश्वास का फैशन होता है। हर युग में अंधविश्वास नए तरह के होते हैं। पुराने अंधविश्वास से आदमी छूटता है और नए पकड़ लेता है। लेकिन अंधविश्वास से कभी नहीं छूट पाता। बदलाहट कर लेता है, लेकिन हमें खयाल में नहीं आता।

समझ लें कि अगर एक जमाने में अंधविश्वास था कि सिर पर टीका लगाने वाला आदमी धार्मिक है। हालाँकि सिर पर टीका लगाने से धार्मिक होने का क्या संबंध? लेकिन यह खयाल था, तो आदमी टीका लगाता था और समझता था कि धार्मिक है। और जो नहीं लगाता था, उसे समझता था था कि वह अधार्मिक है। यह पुराना अंधविश्वास है, यह चला गया। अब नए तरह के अंधविश्वास है। उनमें कोई फर्क नहीं है। अगर एक आदमी टाई बाँधता है, तो समझते हैं कि प्रतिष्ठित आदमी है। और नहीं बाँधता है तो समझते हैं अप्रतिष्ठित है।

ठीक वही का वही मामला है, इसमें कोई फर्क नहीं है। क्या फर्क है? टाई तिलक से बेहतर तो नहीं है, बदतर हो भी सकती है। तिलक का कोई अर्थ भी हो सकता था, टाई का बिलकुल ही अर्थ नहीं है। इस मुल्क (भारत) में तो बिलकुल ही नहीं है, किसी मुल्क में हो भी सकता है। किसी ठंडे मुल्क में टाई का कोई अर्थ हो सकता है कि सब गले को बाँध लो।

निश्चित ही उस मुल्क में जो आदमी अपने गले को नहीं बाँध पाता है, वह गरीब आदमी है। निश्चित ही जो आदमी इतनी सुरक्षा नहीं जुटा पाता कि अपने गले को बाँधकर सर्दी जाने से रोक ले, वह आदमी गरीब है। जो सुविधा-संपन्न है, वह अपने गले को बाँधकर सर्दी से बच जाता है। लेकिन गर्म मुल्क में आदमी टाई बाँधे बैठा हुआ है, तब जरा खतरनाक मालूम पड़ता है कि यह आदमी या तो पागल है- सुविधा-संपन्न है या पागल है?

सुविधा संपन्न होने का मतलब तो यह नहीं है कि गर्मी सहो, गले में बाँध लो, फाँसी लगा लो। वैसे टाई का मतलब फाँसी ही होता है, टाई का मतलब होता है गाँठ। ठंडे मुल्क में तो कुछ मतलब भी हो सकता है, गर्म मुल्क में बिल्कुल फाँसी है।

लेकिन प्रतिष्ठा का खयाल वाला आदमी फाँसी लगाए हुए खड़ा है। नेता है, फाँसी लगाए हुए खड़ा है। और उससे पूछो तो वह कहेगा, ये सब टीका-तिलक लगाने वाले सब अंधविश्वासी हैं। उससे पूछो, यह टाई तुम कैसे बाँधे हुए हो? यह अंधविश्वास नहीं है? यह तुमने कौन-सी वैज्ञानिक व्यवस्था से यह टाई बाँध ली है?

लेकिन टाई इस युग का अंधविश्वास है, इसलिए चलेगा। टीका पुराने युग का अंधविश्वास है, इसलिए नहीं चलेगा। जैसा मैंने कहा कि ठंडे मुल्क में अर्थ भी हो सकता है टाई का, और कुछ लोगों को टीका लगाने का भी अर्थ हो सकता है। इसको बिना खोजे अगर हमने एकदम से अंधविश्वास कह दिया, तो खतरनाक है, गलत बात है।

अब आपने कभी सोचा भी नहीं होगा कि टीका लगाने का क्या मतलब है। अधिक लोग तो अंधविश्वास की तरह ही लगाते रहे हैं। लेकिन जिन्होंने पहली दफे लगाया होगा, उसमें कुछ साइंस ही थी। कुछ विज्ञान ही था। असल में जहाँ टीका लगाया जाता है, वहाँ आज्ञा चक्र है। और जो लोग भी थोड़ा ध्यान करते हैं, वह स्थल गर्म हो जाता है। और उस पर अगर चंदन लगा दिया जाए, तो वह ठंडा हो जाता है। और चंदन उस पर लगाता बहुत वैज्ञानिक प्रक्रिया है।

लेकिन वह बात गई, उसके विज्ञान से कोई मतलब नहीं है। कोई भी चंदन लगाए हुए चला आ रहा है। जिसे आज्ञा-चक्र का न कोई पता है, न जिसने कभी ध्यान किया है। वह टाई बाँधे हुए है गर्म मुल्क में। टाई वैज्ञानिक हो सकती है ठंडे मुल्क में। आज्ञा चक्र पर काम करने वाले आदमी को चंदन का टीका भी वैज्ञानिक हो सकता है, क्योंकि चंदन उसे ठंडक देता है। और जब कोई ध्यान की प्रक्रिया करता है। उसको ठंडा करना जरूरी है, अन्यथा मस्तिष्क को नुकसान पहुँचेगा।

लेकिन अब अगर हम पक्का कर लें कि नहीं, टीका मिटा डालना है। तो जो व्यर्थ लगाए हुए हैं उनका तो मिटाएँगे ही हम, लेकिन बेचारा अपने किसी काम से लगाए हुए है, उसका भी पोंछ डालेंगे। और नहीं पोंछेगा, तो कहेंगे अंधविश्वासी है।

साभार : मैं मृत्यु सिखाता हूँ
सौजन्य : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन

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