अच्छे स्वास्थ्य के लिए करें उपवास

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दृढ़पूर्वक रखा गया उपवास, व्रत या अनाहार, निराहार व अनशन कहलाता है। हमारे शरीर की चपाचय, मेटाबालिस्मद्ध प्रक्रिया पर उपवासों का सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है। उपवास की अवधि में भोजन न करने के कारण भोजन पचाने वाली ऊर्जा का इस्तेमाल शरीर के बाहरी और अंदरूनी रोगों को दूर करने में होता है।

जब शरीर से दूषित पदार्थ बाहर निकलते हैं तब कई बार लोग अतिसार, मूर्छा, अनिद्रा, चक्कर आना, वमन, सिरदर्द, नाड़ी, और साँस की गति का तेज हो जाना, रक्त चाप में वृद्धि हो जाना, जीभ पर सफेद-सी पर्त जम जाना, मूत्रावरोध, मुँह और साँसों से दुर्गन्ध आना, त्वचा पर फफोले पड़ना, दौरे, शीत पित्त, आँतों में ऐंठन, कमजोरी, ज्वर, गंदा व बदबूदार पेशाब आना, स्वप्नदोष की समस्याओं से घिर सकते हैं।

पर ऐसे में जरा भी घबराना नहीं चाहिए क्योंकि यह रोग के बढ़ने के नहीं अपितु रोग मुक्ति के लक्षण होते हैं। उपवास काल में हिमोग्लोबिन की मात्रा में शरीर में बढ़ोतरी हुआ करती है और शरीर में लाल रक्त कण बढ़ते हैं। मूत्र में पस सेल्स तथा एसिटोन बढ़कर फिर खत्म हो जाया करता है। असामान्य श्वेत रक्त कण, कोलेस्ट्रॉल, प्लेटलेट्स, क्रिटिनिन, यूरिया, बिलीरूबिन आदि रक्त घटकों की अवस्था सामान्य हो जाया करती है।

उपवास रखने की वजह से शरीर से दूषित पदार्थ बाहर निकलने की वजह से अकसर मूत्र गाढ़ा हो जाया करता है, इसी वजह से इस अवधि में पानी कम पीने से जलन की समस्या पैदा हो सकती है। मूत्र में पस सेल्स, एसिटोन, फास्फोट्स और ऑक्जेलेट्स बढ़ जाते हैं। इनसे छुटकारा पाने के लिए उपवास की अवधि में खूब पानी पीना चाहिए।

उपवास एक तरह से संजीवनी का काम करते हैं। पुरातनकाल से ही हमारे ऋषि-मुनि अपनी जीवनचर्या में उपवासों को उचित स्थान देते आए हैं। आज भी नवरात्रों में सभी स्त्री-पुरूष व्रत-उपवास रखा करते हैं, पर इन दिनों वे इतने तले-भुने खाद्य पदाथों का सेवन करते हैं कि उनसे उनके स्वास्थ्य पर किसी भी प्रकार का कोई लाभ नहीं पहुँचता है। उपवास किस तरह रखने चाहिए और किस तरह तोड़ने चाहिए, इन सब बातों के बारे में उपवास रखने वाले व्यक्ति को अवश्य ही जानकारी होनी चाहिए।

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