इस दिन को आंवला नवमी के नाम से जाना जाता है। आंवला नवमी के दिन श्रद्घालुओं द्वारा विशेष तौर पर ब्राह्मणों को कुम्हड़ा दान किया जाता है। मान्यता है कि आंवला नवमी के दिन ब्राह्मणों को बीज युक्त कुम्हड़ा दान करने पर कुम्हड़े की बीज में जितने बीज होते हैं, उतने ही साल तक दानदाता को स्वर्ग में रहने की जगह मिलती है।
नवमी के दिन महिलाएं जगह-जगह आंवले के वृक्ष के नीचे पूजा-पाठ करके भगवान विष्णु की विधिवत पूजा अर्चना कर भोजन भी ग्रहण करती है। इसके पीछे यह मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि को आंवले के पेड़ से अमृत की बूंदे गिरती है और यदि इस पेड़ के नीचे व्यक्ति भोजन करता है तो भोजन में अमृत के अंश आ जाता है। जिसके प्रभाव से मनुष्य रोगमुक्त होकर दीर्घायु बनता है।