* जानिए आंवला नवमी पर कुम्हड़ा दान का क्या है महत्व...
कार्तिक मास की नवमी तिथि के दिन आंवले की पूजा करना पुत्र प्राप्ति के लिए भी विशेष लाभदायक माना गया है। पुराणों के अनुसार अक्षय नवमी को कूष्माण्ड नवमी और धात्री नवमी भी कहा जाता है। इस दिन को आंवला नवमी के नाम से जाना जाता है।
नवमी के दिन महिलाएं जगह-जगह आंवले के वृक्ष के नीचे पूजा-पाठ करके भगवान विष्णु की विधिवत पूजा-अर्चना कर भोजन भी ग्रहण करती हैं। इसके पीछे यह मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि को आंवले के पेड़ से अमृत की बूंदें गिरती हैं और यदि इस पेड़ के नीचे व्यक्ति भोजन करता है तो भोजन में अमृत का अंश आ जाता है जिसके प्रभाव से मनुष्य रोगमुक्त होकर दीर्घायु बनता है।
कद्दू का दान क्यों ?
इस दिन कद्दू दान करने से और आंवले के वृक्ष का पूजन करने से उत्तम फल की प्राप्ति होती है। इस दिन दिए गए दान का जन्म-जन्मांतर तक क्षय नहीं होता है। आंवला नवमी के दिन श्रद्धालुओं द्वारा विशेष तौर पर ब्राह्मणों को कुम्हड़ा (कद्दू) दान किया जाता है। मान्यता है कि आंवला नवमी के दिन ब्राह्मणों को बीजयुक्त कुम्हड़ा दान करने पर कुम्हड़े की बीज में जितने बीज होते हैं, उतने ही साल तक दानदाता को स्वर्ग में रहने की जगह मिलती है।