कब है भीष्माष्टमी पर्व, जानिए पूजन के शुभ मुहूर्त एवं पौराणिक कथा
Bhishma Pitamah
प्रतिवर्ष माघ माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को भीष्माष्टमी (bhishmashtami) के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष भीष्म अष्टमी पर्व 08 फरवरी, मंगलवार को पड़ रहा है। इसी दिन भीष्म पितामाह की मृत्यु हुई थी। उन्होंने अपना शरीर छोड़ा था, इसीलिए यह दिन उनका निर्वाण दिवस है। माघ मास की अष्टमी के दिन उनकी यहां पढ़ें पूजन के शुभ मुहूर्त (Bhishma Ashtami 2022) और कथा-
भीष्म अष्टमी 2022 पर तिथि एवं पूजन के शुभ मुहूर्त- Bhishma Ashtami 2022
माघ शुक्ल अष्टमी तिथि का आरंभ- मंगलवार, 08 फरवरी, सुबह 06.15 मिनट से शुरू।
बुधवार 09 फरवरी 2022 को प्रातः 08.30 मिनट पर अष्टमी समाप्त होगी।
पूजन के खास मुहूर्त- प्रातः 11.29 से दोपहर 01:42 मिनट तक।
राहुकाल का समय (मंगलवार): अपराह्न 3:00 से 4:30 बजे तक।
Bhishma Maha Bharat Story- इस कथा के अनुसार भीष्म पितामह का असली नाम देवव्रत था। वे हस्तिनापुर के राजा शांतनु की पटरानी गंगा की कोख से उत्पन्न हुए थे। एक समय की बात है। राजा शांतनु शिकार खेलते-खेलते गंगा तट के पार चले गए। वहां से लौटते वक्त उनकी भेंट हरिदास केवट की पुत्री मत्स्यगंधा (सत्यवती) से हुई।
मत्स्यगंधा बहुत ही रूपवान थी। उसे देखकर शांतनु उसके लावण्य पर मोहित हो गए। एक दिन राजा शांतनु हरिदास के पास जाकर उनकी पुत्री सत्यवाती का हाथ मांगते है, परंतु वह राजा के प्रस्ताव को ठुकरा देता है और कहता है कि- महाराज! आपका ज्येष्ठ पुत्र देवव्रत है। जो आपके राज्य का उत्तराधिकारी है, यदि आप मेरी कन्या के पुत्र को राज्य का उत्तराधिकारी बनाने की घोषणा करें तो मैं मत्स्यगंधा का हाथ आपके हाथ में देने को तैयार हूं। परंतु राजा शांतनु इस बात को मानने से इनकार कर देते है।
ऐसे ही कुछ समय बीत जाता है, लेकिन वे सत्यवती को भूला नहीं पाते हैं और दिन-रात उसकी याद में व्याकुल रहने ललते हैं। यह सब देख एक दिन देवव्रत ने अपने पिता से उनकी व्याकुलता का कारण पूछा। सारा वृतांत जानने पर देवव्रत स्वयं केवट हरिदास के पास गए और उनकी जिज्ञासा को शांत करने के लिए गंगा जल हाथ में लेकर शपथ ली कि 'मैं आजीवन अविवाहित ही रहूंगा'।
देवव्रत की इसी कठिन प्रतिज्ञा के कारण उनका नाम भीष्म पितामह पड़ा। तब राजा शांतनु ने प्रसन्न होकर अपने पुत्र को इच्छित मृत्यु का वरदान दिया। महाभारत के युद्ध की समाप्ति पर जब सूर्यदेव दक्षिणायन से उत्तरायण हुए तब भीष्म पितामह ने अपना शरीर त्याग दिया। इसीलिए माघ शुक्ल अष्टमी को उनका निर्वाण दिवस मनाया जाता है।
मान्यतानुसार इसी दिन व्रत रखकर जो व्यक्ति अपने पित्तरों के निमित्त जल, कुश और तिल के साथ श्रद्धापूर्वक तर्पण करता है, उसे संतान तथा मोक्ष की प्राप्ति अवश्य होती है तथा उनके पितरों को भी वैकुंठ प्राप्त होता है। इस दिन भीष्म पितामह की स्मृति में श्राद्ध भी किया जाता है।