आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में धूम-धाम से भोगी त्योहार मनाया जाता है। महाराष्ट्र के कई क्षेत्रों में मकर संक्रांति को भोगी कहते हैं। यह त्योहार 13 जनवरी से ही प्रारंभ हो जाता है। खासकर 14 जनवरी को यह त्योहार है। असम में इसी त्योहार को भोगाली बिहू कहते हैं। भोगाली बिहू पौष संक्रांति के दिन अर्थात मकर संक्रांति के दिन या आसपास आता है।
1. तेलगु और तमिल दोनों भाषी भोगी मनाते हैं। दक्षिण भारत के लोगों के लिए भोगी का त्योहार बहुत ही महत्वूर्ण होता है। भोगी को लोकप्रिय रूप से भोगी पोंगल कहा जाता है।
2. आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में इस दिन घर से सभी पुरानी, बिना काम की और नकारात्मक चीजें निकालकर आग में जला दी जाती हैं और अग्नि देवता से सुख और समृद्धि की कामना की जाती है।
3. इस दिन लोग नए कपड़े पहनते हैं और प्रवेश द्वार को रंगोली और कोलम से सजाते हैं।
4. लोग इस शुभ दिन पर अपने प्रियजनों को भोगी शुभकामनाएं और संदेश भेजते हैं।
5. इस दिन प्रमुख मुग्गुलु प्रकार की रंगोली बनाई जाती है और भोगी पल्लू अनुष्ठान किया जाता है।
पोंगल का ही प्रथम दिन है भोगी पर्व...
1. पोंगल के पहले दिन को 'भोगी' के रूप में जाना जाता है और यह बारिश के देवता इंद्र को समर्पित है।
2. पोंगल के दूसरे दिन को 'थाई पोंगल' के रूप में जाना जाता है, जो सूर्य देवता को मनाता है।
3. पोंगल के तीसरे दिन को 'मट्टू पोंगल' के नाम से जाना जाता है। इस दिन, पशुधन, गायों को सजाकर उनकी पूजा की जाती है। यह दिन फसलों के उत्पादन में मदद करने वाले खेत, जानवरों को धन्यवाद देने के लिए मनाया जाता है।
4. पोंगल का चौथा दिन 'कन्नुम/कानू' होता है, इस दिन, हल्दी के पत्ते पर सुपारी, गन्ने के साथ बचा हुआ पोंगल पकवान खुले में रखा जाता है।