मनोवांछित फल चाहिए तो ऐसे मनाएं पारंपरिक छठ पर्व

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दीपावली के बाद भैयादूज के तीसरे दिन से छठ पर्व आरंभ होता है। यह पर्व 4 दिनों तक मनाया जाता है। इसमें पहले दिन सेंधा नमक, घी से बना हुआ अरवा चावल और कद्दू की सब्जी प्रसाद के रूप में ली जाती है। छठ पर्व बांस निर्मित सूप, टोकरी, मिट्टी के बर्तनों, गन्ने के रस, गु़ड़, चावल और गेहूं से निर्मित प्रसाद और सुमधुर लोकगीतों से युक्त होकर लोक जीवन की भरपूर मिठास का प्रसार करता है। 
 
* अगले दिन से उपवास आरंभ होता है। इस दिन रात में खीर बनती है। व्रतधारी रात में यह प्रसाद लेते हैं। 
 
* तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य यानी दूध अर्पण करते हैं। 
 
* अंतिम यानी चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य चढ़ाते हैं। 
 
इस पूजा में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है। इन दिनों लहसुन व प्याज वर्जित है। जिन घरों में यह पूजा होती है, वहां भक्तिगीत गाए जाते हैं।
 
इस पर्व को मूलत: सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे 'छठ' कहा गया है। यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ एवं कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है। पारिवारिक सुख-समृद्धि तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है। 
 
इस पर्व को स्त्री और पुरुष समान रूप से मनाते हैं। छठ पूजा 4 दिवसीय उत्सव है। इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी तथा समाप्ति कार्तिक शुक्ल सप्तमी को होती है। इस दौरान व्रतधारी लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं। इस दौरान वे पानी भी ग्रहण नहीं करते। षष्ठी को मनाया जाने वाला छठ पूजा सूर्य उपासना का अनुपम लोकपर्व है। यह मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तरप्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। इस पर्व पर देश-विदेश में रहने वाले बिहारी अपने गांव लौटकर इस पर्व को मनाते हैं।

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