छठ पूजा पर्व : 4 दिन के पूजन की तिथि एवं व्रत का महत्व
प्रतिवर्ष दीपावली के छठे दिन से शुरू होने वाला छठ का पर्व 4 दिनों तक चलता है। इन चारों दिन श्रद्धालु भगवान सूर्य की आराधना करके वर्षभर सुखी, स्वस्थ और निरोगी रहने की कामना करते हैं। छठ बिहार का सबसे लोकप्रिय त्योहार है। वर्ष 2016 में यह पर्व 4 नवंबर से मनाया जाएगा।
छठ पर्व की पूजा तिथि :
4 नवंबर 2016, शुक्रवार को नहाय खाय का पर्व मनाया जाएगा।
5 नवंबर 2016, शनिवार को खरना मनाया जाएगा।
6 नवंबर 2016, रविवार को संध्या अर्घ्य (अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य) दिया जाएगा।
7 नवंबर 2016, सोमवार को सूर्योदय अर्घ्य (उदीयमान सूर्य को अर्घ्य) दिया जाएगा। इसके साथ ही पारण (छठ पारणा) करके व्रत को पूर्ण किया जाएगा।
लोक आस्था का पर्व छठ सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध है। छठ पर्व के पहले दिन घर की साफ-सफाई की जाती है। छठ पर्व का पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी 'नहाय-खाय' के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर छठी माता का पूजन होता है।
मान्यता है कि पूजा के दौरान कोई भी मन्नत मांगी जाए, तो वह अवश्य पूरी होती। जिनकी मन्नत पूरी होती है, वे अपने वादे अनुसार पूजा करते हैं। इस दौरान पूजा स्थलों पर लोट लगाकर आते लोगों को देखा जा सकता है।
इस व्रत में सबसे पहले घर की सफाई कर उसे पवित्र बना लिया जाता है। इसके पश्चात छठव्रती स्नान कर पवित्र तरीके से बने शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं। घर से सभी सदस्य व्रती के भोजनोपरांत ही भोजन ग्रहण करते हैं। भोजन के रूप में कद्दू-दाल और चावल ग्रहण किया जाता है। यह दाल चने की होती है।
खरना
छठ पर्व के दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी को व्रतधारी दिनभर का उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं। इसे 'खरना' कहा जाता है। खरना का प्रसाद लेने के लिए आसपास के सभी लोगों को निमंत्रित किया जाता है। प्रसाद के रूप में गन्ने के रस में बने हुए चावल की खीर के साथ दूध, चावल का पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है। इसमें नमक या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है। इस दौरान पूरे घर की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है।
संध्या अर्घ्य
छठ पर्व के तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छठ प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में ठेकुआ, जिसे कुछ क्षेत्रों में टिकरी भी कहते हैं, के अलावा चावल के लड्डू, जिसे लडुआ भी कहा जाता है, बनाते हैं। इसके अलावा चढ़ावे के रूप में लाया गया सांचा और फल भी छठ प्रसाद के रूप में शामिल होता है। शाम को पूरी तैयारी और व्यवस्था कर बांस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है और व्रती के साथ परिवार तथा पड़ोस के सारे लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने घाट की ओर चल पड़ते हैं।
सभी छठव्रती एक तय तालाब या नदी किनारे इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से अर्घ्य दान संपन्न करते हैं। सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य दिया जाता है तथा छठी मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती है। इस दौरान कुछ घंटे के लिए मेले का दृश्य बन जाता है।
सूर्य को अर्घ्य
छठ पर्व के चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। व्रती वहीं पुन: इकट्ठा होते हैं, जहां उन्होंने शाम को अर्घ्य दिया था। पुन: पिछली शाम की प्रक्रिया की पुनरावृत्ति होती है। अंत में व्रती कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते हैं।