तुलसी को भारतीय जनमानस में बड़ा पवित्र स्थान दिया गया है। यह लक्ष्मी व नारायण दोनों को समान रूप से प्रिय है। इसे 'हरिप्रिया' भी कहा गया है। बिना तुलसी के यज्ञ, हवन, पूजन, कर्मकांड, साधना व उपासना पूरे नहीं होते। यहां तक कि श्राद्ध, तर्पण, दान, संकल्प के साथ ही चरणामृत, प्रसाद व भगवान के भोग में तुलसी का होना अनिवार्य माना गया है।
उनके आगमन को देवउठनी एकादशी के रूप में भी मनाया जाता है। भारतीय समाज में तुलसी के पौधे को देवतुल्य मान ऊंचा स्थान दिया गया है। यह औषधि भी है, तो मोक्ष प्रदायिनी भी है। तुलसी के संबंध में जन्म-जन्मांतर के बारे में अनेक पौराणिक गाथाएं विद्यमान हैं। तुलसी के अन्य नामों में 'वृन्दा' और 'विष्णुप्रिया' खास माने जाते हैं।
हर घर-परिवार के आंगन में तुलसी को स्थान मिला हुआ है, जहां नित उसे पूजा जाता है। कहा गया है कि जहां तुलसी होती है वहां साक्षात लक्ष्मी का निवास भी होता है। स्वयं भगवान नारायण श्री हरि तुलसी को अपने मस्तक पर धारण करते हैं। यह मोक्षकारक है तो भगवान की भक्ति भी प्रदान करती है, क्योंकि ईश्वर की उपासना, पूजा व भोग में तुलसी के पत्तों का होना अनिवार्य माना गया है।