पुराणों के अनुसार एक बार मां पार्वती को बहुत तेज भूख लगी होती है किंतु कैलाश पर उस समय कुछ न रहने के कारण वे अपनी क्षुधा शांत करने के लिए भगवान शंकर के पास जाती हैं और उनसे भोजन की मांग करती हैं किंतु उस समय शंकरजी अपनी समाधि में लीन होते हैं। मां पार्वती के बार-बार निवेदन के बाद भी शंकरजी ध्यान से नहीं उठते और वे ध्यानमुद्रा में ही मग्न रहते हैं।
मां पार्वती की भूख और तेज हो जाती है और वे भूख से व्याकुल हो उठती हैं, परंतु जब मां पार्वती को खाने की कोई चीज नहीं मिलती है, तब वे श्वास खींचकर शिवजी को ही निगल जाती हैं। भगवान शिव के कंठ में विष होने के कारण मां के शरीर से धुआं निकलने लगता है, उनका स्वरूप श्रृंगारविहीन तथा विकृत हो जाता है तथा मां पार्वती की भूख शांत होती है।