Shakambhari Navratri : देवी शाकंभरी की दिव्य स्तुति, आरती और चालीसा, यहां पढ़ें-

शाकंभरी नवरात्रि पर्व पौष महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से शुरू होकर पूर्णिमा तक चलती है। इन दिनों माता पार्वती के स्वरूप देवी शाकम्भरी की पूजा-अर्चना करने का विधान है। आइए यहां आपके लिए प्रस्तुत हैं देवी की आरती़, स्तुति और पावन चालीसा-
 
श्री शाकंभरी माता की दिव्य स्तुति: devi shakambhari stuti 
 
मां ब्रह्माणी नमो नमः
हे रुद्राणी नमो नमः
सकराय वासिनी नमो नमः
शाकंभरी मां नमोस्तुते
 
मात शताक्षी नमो नमः
दुर्गम विनाशी नमो नमः
हे सुख-राशि नमो नमः
शाकंभरी मां नमोस्तुते
 
संकट हारिणि नमो नमः
कष्ट निवारिणी नमो नमः
मां भव तारिणी नमो नमः
शाकंभरी मां नमोस्तुते
 
हे जग जननी नमो नमः
कामना पूर्णि नमो नमः
सौम्य रूपणी नमो नमः
शाकंभरी मां नमोस्तुते
 
हे परमेश्वरी नमो नमः
त्रिपुर सुंदरी नमो नमः
हे विश्वेश्वरि नमो नमः
शाकंभरी मां नमोस्तुते
 
दुर्गा रूपेण नमो नमः
लक्ष्मी रूपेण नमो नमः
विद्या रूपेण नमो नमः
शाकंभरी मां नमोस्तुते
 
भुवन वंदिनी नमो नमः
द्वारा निकन्दनी नमो नमः
सिंह वाहिनी नमो नमः
शाकंभरी मां नमोस्तुते
 
शक्ति-स्वरूपा नमो नमः
हे भव-भूपा नमो नमः
अनन्त अनूपा नमो नमः
शाकंभरी मां नमोस्तुते
 
अति सुख दायिनी नमो नमः
करुणा नयनी नमो नमः
हे वर दायनी नमो नमः
शाकंभरी मां नमोस्तुते
 
मंगल करनी नमो नमः
अमंगल हरणी नमो नमः
अभया वरणी नमो नमः
शाकंभरी मां नमोस्तुते
 
सुर धाम निवासिनी नमो नमः
हे अविलासिनी नमो नमः
दैत्य विनाशिनी नमो नमः
शाकंभरी मां नमोस्तुते
 
शैल पुत्री नमो नमः
ब्रह्म-चारिणी नमो नमः
चन्द्रघंटा नमो नमः
शाकंभरी मां नमोस्तुते
 
मां कुष्मांडा नमो नमः
स्कन्द माता नमो नमः
हे कात्यायिनी नमो नमः
शाकंभरी मां नमोस्तुते
 
कालरात्रि नमो नमः
हे महागौरी नमो नमः
सिद्धिदात्री नमो नमः
शाकंभरी मां नमोस्तुते
 
हे करुणामयी नमो नमः
हे ममतामयी नमो नमः
भक्त-वत्सला नमो नमः
शाकंभरी मां नमोस्तुते
 
मां ब्रह्माणी नमो नमः
हे रुद्राणी नमो नमः
सकराय वासिनी नमो नमः
शाकंभरी मां नमोस्तुते। 

आरती : हरि ॐ श्री शाकुम्भरी अम्बाजी की आरती कीजो
 
हरि ॐ श्री शाकुम्भरी अम्बाजी की आरती कीजो
ऐसी अद्भुत रूप हृदय धर लीजो
शताक्षी दयालु की आरती कीजो
तुम परिपूर्ण आदि भवानी मां, सब घट तुम आप बखानी मां
शाकुम्भरी अम्बाजी की आरती कीजो
 
तुम्हीं हो शाकुम्भर, तुम ही हो सताक्षी मां
शिवमूर्ति माया प्रकाशी मां,
शाकुम्भरी अम्बाजी की आरती कीजो
 
नित जो नर-नारी अम्बे आरती गावे मां
इच्छा पूर्ण कीजो, शाकुम्भर दर्शन पावे मां
शाकुम्भरी अम्बाजी की आरती कीजो
 
जो नर आरती पढ़े पढ़ावे मां, जो नर आरती सुनावे मां
बस बैकुंठ शाकुम्भर दर्शन पावे
शाकुम्भरी अंबाजी की आरती कीजो। 

मां शाकंभरी चालीसा : जे जे श्री शकुंभारी माता-Shakambhari chalisa
 
दोहा
 
दाहिने भीमा ब्रामरी अपनी छवि दिखाए। 
बाईं ओर सतची नेत्रों को चैन दीवलए। 
भूर देव महारानी के सेवक पहरेदार। 
मां शकुंभारी देवी की जाग मई जे जे कार।।
 
चौपाई
 
जे जे श्री शकुंभारी माता। हर कोई तुमको सिष नवता।।
गणपति सदा पास मई रहते। विघन ओर बढ़ा हर लेते।।
हनुमान पास बलसाली। अगया टुंरी कभी ना ताली।।
मुनि वियास ने कही कहानी। देवी भागवत कथा बखनी।।
छवि आपकी बड़ी निराली। बढ़ा अपने पर ले डाली।।
अखियो मई आ जाता पानी। एसी किरपा करी भवानी।।
रुरू डेतिए ने धीयां लगाया। वार मई सुंदर पुत्रा था पाया।।
दुर्गम नाम पड़ा था उसका। अच्छा कर्म नहीं था जिसका।।
बचपन से था वो अभिमानी। करता रहता था मनमानी।।
योवां की जब पाई अवस्था। सारी तोड़ी धर्म वेवस्था।।
सोचा एक दिन वेद छुपा लूं। हर ब्रममद को दास बना लूं।।
देवी-देवता घबरागे। मेरी सरण मई ही आएगे।।
विष्णु शिव को छोड़ा उसने। ब्रह्माजी को धीयया उसने।।
भोजन छोड़ा फल ना खाया। वायु पीकेर आनंद पाया।।
जब ब्रहाम्मा का दर्शन पाया। संत भाव हो वचन सुनाया।।
चारो वेद भक्ति मई चाहू। महिमा मई जिनकी फेलौ।।
ब्ड ब्रहाम्मा वार दे डाला। चारों वेद को उसने संभाला।।
पाई उसने अमर निसनी। हुआ प्रसन्न पाकर अभिमानी।।
जैसे ही वार पाकर आया। अपना असली रूप दिखाया।।
धर्म धूवजा को लगा मिटाने। अपनी शक्ति लगा बड़ाने।।
बिना वेद ऋषि मुनि थे डोले। पृथ्वी खाने लगी हिचकोले।।
अंबार ने बरसाए शोले। सब त्राहि-त्राहि थे बोले।।
सागर नदी का सूखा पानी। कला दल-दल कहे कहानी।।
पत्ते बी झड़कर गिरते थे। पासु ओर पाक्सी मरते थे।।
सूरज पतन जलती जाए। पीने का जल कोई ना पाए।।
चंदा ने सीतलता छोड़ी। समाए ने भी मर्यादा तोड़ी।।
सभी डिसाए थे मतियाली। बिखर गई पूज की तली।।
बिना वेद सब ब्रहाम्मद रोए। दुर्बल निर्धन दुख मई खोए।।
बिना ग्रंथ के कैसे पूजन। तड़प रहा था सबका ही मान।।
दुखी देवता धीयां लगाया। विनती सुन प्रगती महामाया।।
मा ने अधभूत दर्श दिखाया। सब नेत्रों से जल बरसाया।।
हर अंग से झरना बहाया। सतची सूभ नाम धराया।।
एक हाथ मई अन्न भरा था। फल भी दूजे हाथ धारा था।।
तीसरे हाथ मई तीर धार लिया। चोथे हाथ मई धनुष कर लिया।।
दुर्गम रक्चाश को फिर मारा। इस भूमि का भार उतरा।।
नदियों को कर दिया समंदर। लगे फूल-फल बाग के अंदर।।
हारे-भरे खेत लहराई। वेद ससत्रा सारे लोटाय।।
मंदिरो मई गूंजी सांख वाडी। हर्षित हुए मुनि जान पड़ी।।
अन्न-धन साक को देने वाली। सकंभारी देवी बलसाली।।
नो दिन खड़ी रही महारानी। सहारनपुर जंगल मई निसनी।।

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Shakambhari Stuti
 
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