वास्तव में गंगा जी को एक बार एक ऋषि ने पूरा का पूरा गटक लिया था, फिर देवताओं के अनुरोध और भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर उन्होंने गंगा मैया को मुक्त किया ताकि वह भगीरथ के पूर्वजों को मुक्ति प्रदान कर सके। जिस दिन गंगा मैया को ऋषि ने मुक्त किया वह दिन था वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी का। इसलिये इस दिन को गंगा सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है। आइए जानते हैं वैशाख शुक्ल सप्तमी को हुए इस पौराणिक कथानक को विस्तार से...
अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिये भगीरथ ने कड़ा तप कर गंगा मैया को पृथ्वी पर लाने में कामयाबी मिल गई थी। भगवान शिव ने अपनी जटा में लपेट कर गंगा के अनियंत्रित प्रवाह को नियंत्रित तो कर लिया लेकिन बावजूद उसके भी गंगा मैया के रास्ते में आने वाले बहुत से वन, आश्रम नष्ट हो रहे थे।
चलते-चलते वह जाहनु ऋषि के आश्रम में पंहुच गई जब जाह्नु ऋषि ने गंगा द्वारा मचाई तबाही को देखा तो वे बहुत क्रोधित हुए और गंगा के सारे पानी को पी गए। भगीरथ को अपना प्रयास विफल दिखाई देने लगा। वह जाह्नु ऋषि को प्रसन्न करने के लिये तप पर बैठ गए। देवताओं ने भी महर्षि से अनुरोध कर गंगा के पृथ्वी पर अवतरित होने के महत्व के बारे में बताया। अब जाह्नु ऋषि का क्रोध शांत हुआ तो उन्होंने अपने कान से गंगा मुक्त कर दिया। मान्यता है कि इसी कारण गंगा को जाह्नवी भी कहा जाता है। जिस दिन उन्होंने गंगा को अपने कान से मुक्त किया वह दिन था वैशाख मास की शुक्ल सप्तमी का। इसलिए इसे गंगा सप्तमी और जाह्नवी सप्तमी भी कहा जाता है।