दक्षिण भारत में मकर संक्रांति के दिनों में ही पोंगल पर्व मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश में मनाया जाता है। तीन दिन के इस पर्व में सूर्य की पूजा, पशु धन की पूजा और सामूहिक स्तर पर प्रसन्नता के माहौल में सभी लोग गीत-संगीत का आनंद लेते हैं।
गांवों में यह पर्व ज्यादा जोर-शोर से मनाया जाता है। पशुधन पूजा में पोंगल पर्व बिल्कुल गोवर्धन पूजन की तरह है। बैलों और गौ माता के सींगों को कलर से रंगबिरंगी किया जाता हैं। स्वादिष्ट भोजन पका कर उन्हें खिलाए जाते है। सांडों-बैलों के साथ भागदौड़ कर उन्हें नियंत्रित करने का जश्न भी मनाया जाता है। यह खतरनाक खेल है जो बहादुरी की मांग करता है।
इस समय धान की फसल खलिहान में आ चुकी होती है। चावल, दूध, घी, शक्कर से भोजन तैयार कर सूर्य देव को भोग लगाते हैं। कई वर्षों पूर्व पोंगल पर्व कन्याओं द्वारा बहादुरी दिखाने वाले युवकों से विवाह करने का पर्व भी हुआ करता था, लेकिन आधुनिक युग में पोंगल खेत-खलिहानों के बजाए टीवी, मोबाइल, कम्प्यूटर आदि पर सिकुड़ता जा रहा है। तमिलनाडु में मकर राशि के प्रवेश के साथ ही पोंगल की शुरुआत होती हैं। इस दिन सूर्य को अन्नदाता मानकर उसकी पूजा लगातार चार दिन की जाती हैं। पोंगल पर अच्छी फसल, प्रकाश और सुखदायी जीवन के लिए सूर्य के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का पर्व है।