जगन्नाथ यात्रा कब है? लॉकडाउन नियमों के चलते क्या है तैयारी

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ओडिशा के पुरी में 21 दिन चलने वाली चंदन यात्रा नरेंद्र सरोवर से पहले ही शुरू हो गई है। इसी के साथ जगन्नाथ रथयात्रा के लिए रथों का निर्माण भी पूरे विधि-विधान के साथ 10 दिन पूर्व ही शुरू हो गया है, जो अभी तक चल रहा है। कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन के चलते पिछले साल भक्त के बगैर की जगन्नाथ यात्रा हुई थी। पुजारियों और कर्मचारियों ने यात्रा निकाली थी और इस बार भी यात्रा पर वायरस का खतरा मंडरा रहा है। समुद्र किनारे बसे पुरी नगर में होने वाली जगन्नाथ रथयात्रा उत्सव के समय आस्था और विश्वास का जो भव्य वैभव और विराट प्रदर्शन देखने को मिलता है, वह दुनिया में और कहीं दुर्लभ है।
 
 
1. 21 दिन तक नरेन्द्र सरोवर में श्रीविग्रह नौका विहार करेंगे। इसके लिए पुरी जगन्नाथ मंदिर एवं नरेन्द्र सरोवर के पास धारा 144 लगा दी गई है। स्थानीय प्रशासन ने तय किया है कि पिछले साल की तरह इस बार भी रथयात्रा बिना दर्शनार्थियों के ही संपन्न होगी।
 
2. प्रशासन रथ यात्रा से जुड़े सभी पुजारियों, पुरोहितों और सेवकों की सूची भी तैयार कर रहा है। सभी को कोरोना का टीका भी लगाया गया, ताकि दो महीने बाद जब रथ यात्रा शुरू हो तब तक सभी को टीके की दोनों डोज लग चुकी हों। फेस मास्क, सेनिटेशन और हाथ धोने के उपयोग और सामाजिक दूरी बनाए रखने पर जागरूकता कार्यक्रम जारी रहेगा। लेकिन अभी यह तय नहीं किया गया है कि यात्रा में आम लोगों को जाने की अनुमति रहेगी या नहीं।
 
 
3. 10 दिन से रथ निर्माण की प्रक्रिया चल रही है। रथयात्रा से संबंधित अनुष्ठान अक्षय तृतीया 15 मई 2021 से शुरू हो गए हैं जबकि जगन्नाथ पुरी में वार्षिक रथयात्रा इस वर्ष 12 जुलाई को होगी। रथों के लिए काष्ठ का चयन बसंत पंचमी के दिन से शुरू होता है और उनका निर्माण अक्षय तृतीया से प्रारम्भ होता है।
 
 
4. भगवान जगन्नाथ रथयात्रा के लिए हर साल 3 रथ बनाए जाते हैं। इन रथों में पहिये से लेकर शिखर के ध्वजदंड तक 34 अलग-अलग हिस्से होते हैं। तीनों रथों के निर्माण में 4000 लकड़ी के हिस्से तैयार किए जाते हैं। इसमें 8-8 फीट के 865 लकड़ी के मोटे तनों यानी 13000 क्यूबिक फीट लकड़ी का इस्तेमाल होता है। यह लकड़ी नयागढ़, खुर्दा, बौध इलाके के वनों से 1000 पेड़ों को काटकर जुटाई जाती है। हालांकि इसके लिए इससे दोगुने पौधे भी लगाए जाते हैं।
 
 
5. पुरी रथयात्रा के लिए बलराम, श्रीकृष्ण और देवी सुभद्रा के लिए तीन अलग-अलग रथ निर्मित किए जाते हैं। रथयात्रा में सबसे आगे बलरामजी का रथ, उसके बाद बीच में देवी सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ श्रीकृष्ण का रथ होता है। इसे उनके रंग और ऊंचाई से पहचाना जाता है। 
 
6. भगवान जगन्नाथ का नंदीघोष रथ 45.6 फीट ऊंचा, बलरामजी का तालध्वज रथ 45 फीट ऊंचा और देवी सुभद्रा का दर्पदलन रथ 44.6 फीट ऊंचा होता है।
 
 
7. बलरामजी के रथ को 'तालध्वज' कहते हैं, जिसका रंग लाल और हरा होता है। देवी सुभद्रा के रथ को 'दर्पदलन' या ‘पद्म रथ’ कहा जाता है, जो काले या नीले और लाल रंग का होता है, जबकि भगवान जगन्नाथ के रथ को ' नंदीघोष' या 'गरुड़ध्वज' कहते हैं। इसका रंग लाल और पीला होता है।
 
8. सभी रथ नीम की पवित्र और परिपक्व काष्ठ (लकड़ियों) से बनाए जाते हैं, जिसे ‘दारु’ कहते हैं। इसके लिए नीम के स्वस्थ और शुभ पेड़ की पहचान की जाती है, जिसके लिए जगन्नाथ मंदिर एक खास समिति का गठन करती है। इन रथों के निर्माण में किसी भी प्रकार के कील या कांटे या अन्य किसी धातु का प्रयोग नहीं होता है। 
 
9. जब तीनों रथ तैयार हो जाते हैं, तब 'छर पहनरा' नामक अनुष्ठान संपन्न किया जाता है। इसके तहत पुरी के गजपति राजा पालकी में यहां आते हैं और इन तीनों रथों की विधिवत पूजा करते हैं और ‘सोने की झाड़ू’ से रथ मण्डप और रास्ते को साफ़ करते हैं।
 
10. आषाढ़ माह की शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को रथयात्रा आरम्भ होती है। ढोल, नगाड़ों, तुरही और शंखध्वनि के बीच भक्तगण इन रथों को खींचते हैं। कहते हैं, जिन्हें रथ को खींचने का अवसर प्राप्त होता है, वह महाभाग्यवान माना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, रथ खींचने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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