* रामायण के अयोध्याकांड में निषादराज केवट का वर्णन मिलता है, जिसके अनुसार प्रभु श्रीराम केवट को आवाज देकर कहते हैं- नाव किनारे ले आओ, पार जाना है।
* 'मागी नाव न केवटु आना। कहइ तुम्हार मरमु मैं जाना॥ चरन कमल रज कहुं सबु कहई। मानुष करनि मूरि कछु अहई॥' तब श्रीराम द्वारा केवट से नाव मांगाने पर केवट वह नहीं लाता है। और कहता है की ' प्रभु मैंने आपका मर्म जान लिया। पहले आप अपने चरण धुलवाओ, फिर नाव पर चढ़ाऊंगा।
* केवट प्रभु श्रीराम के अनन्य भक्त थे, जिन्होंने अयोध्या के राजकुमार को छुकर उनका सान्निध्य प्राप्त करके उनके साथ नाव में बैठकर अपना खोया हुआ सामाजिक अधिकार प्राप्त करने का सोच रहे थे। इसी कारण त्रेता के संपूर्ण समाज में केवट की प्रतिष्ठा मानी गई हैं। इसीलिए आज के दिन केवट समाज द्वारा बड़े ही भव्य रूप से शोभायात्रा निकाल कर उनकी जयंती मनाई जाती है और इस दिन प्रसाद वितरण भी किया जाता है।