काफी सोच-विचार करके सेठजी ने अपना काम नौकरों को सौंप दिया और खुद सेठानी के साथ तीर्थयात्रा पर निकल पड़े। अपने नगर से बाहर निकलने पर उन्हें एक साधु मिले, जो ध्यानमग्न बैठे थे। सेठजी ने सोचा, क्यों न साधु से आशीर्वाद लेकर आगे की यात्रा की जाए।
सेठ और सेठानी साधु के निकट बैठ गए। साधु ने जब आंखें खोलीं तो उन्हें ज्ञात हुआ कि सेठ और सेठानी काफी समय से आशीर्वाद की प्रतीक्षा में बैठे हैं। साधु ने सेठ और सेठानी से कहा कि मैं तुम्हारा दुःख जानता हूं। तुम शनि प्रदोष व्रत करो, इससे तुम्हें संतान सुख प्राप्त होगा।