श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन उत्तर भारत में श्रावणी कर्म किया जाता है और दक्षिण भारत में इसे ही अबित्तम कहा जाता है। आओ जानते हैं कि यह क्यों कहा और किया जाता है।
1. सभी राज्यों में श्रावण पूर्णिमा पर रक्षासूत्र बांधने, यज्ञोपवीत धारण करने, यज्ञोपवीत अर्थात जनेऊ बदलने व्रत करने, नदी स्नान करने, दान करने, ऋषि पूजन करने, तर्पण करने और तप करने का महत्व रहता है। यज्ञोपवीत बदलने को श्रावणी उपाकर्म भी कहा जाता है।
2. उत्तर भारत में रक्षा बंधन या श्रावण पूर्णिमा पर किए जाने वाले कर्म को श्रावणी उपाकर्म कहते हैं। क्योंकि इस दिन पवित्र धागे जनेऊ को बदला जाता है।
3. दक्षिण भारत में रक्षा बंधन या श्रावण पूर्णिमा पर किए जाने वाले कर्म को अबित्तम कहा जाता है क्योंकि इस दिन पवित्र धागे जनेऊ को बदला जाता है।
4. इसे श्रावणी या ऋषि तर्पण भी कहते हैं। ग्रंथों में रक्षा बंधन को पुण्य प्रदायक, पाप नाशक और विष तारक या विष नाशक भी माना जाता है जो कि खराब कर्मों का नाश करता है।
5. श्रावण माह में श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को श्रावणी उपाकर्म प्रत्येक हिन्दू के लिए जरूर बताया गया है। इसमें दसविधि स्नान करने से आत्मशुद्धि होती है व पितरों के तर्पण से उन्हें भी तृप्ति होती है।
6. श्रावणी उपाकर में यज्ञोपवीत पूजन और उपनयन संस्कार करने का विधान है। मतलब यह कि श्रावणी पर्व पर द्विजत्व के संकल्प का नवीनीकरण किया जाता है। उसके लिए परंपरागत ढंग से तीर्थ अवगाहन, दशस्नान, हेमाद्रि संकल्प एवं तर्पण आदि कर्म किए जाते हैं।
7. श्रावणी उपाकर्म में पाप-निवारण हेतु पातकों, उपपातकों और महापातकों से बचने, परद्रव्य अपहरण न करने, परनिंदा न करने, आहार-विहार का ध्यान रखने, हिंसा न करने, इंद्रियों का संयम करने एवं सदाचरण करने की प्रतिज्ञा ली जाती है।
8. यज्ञोपवीत हर उस हिन्दू को धारण करना चाहिए तो धर्म के मार्ग पर चलना चालकर प्रतिदिन संध्यावंदन करना चाहता है।
9. यज्ञोपवीत सिर्फ ब्राह्मण ही नहीं बल्कि कई अन्य समाज के लोग भी धारण करते हैं। सभी को जनेऊ धारण करने का अधिकार है।
10. यह हर हिन्दू का एक संस्कार है। बचपन में इस संस्कार को किया जाना चाहिए। श्रावण मास की पूर्णिमा पर जनेऊ बदली जाती है।