09 दिसंबर को स्कंद षष्ठी व्रत, जानिए महत्व, पूजा विधि, कथा और शुभ मुहूर्त
वर्ष 2021 में मार्गशीर्ष अगहन मास की स्कंद षष्ठी (skand sasthi 2021) गुरुवार, 9 दिसंबर को मनाई जा रही है। मान्यतानुसार यह व्रत मुख्य रूप से दक्षिण भारत के राज्यों में अधिक लोकप्रिय है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती के बड़े पुत्र कार्तिकेय की विधिपूर्वक पूजा की जाती है। कार्तिकेय को स्कंद देव, मुरुगन, सुब्रह्मन्य नामों से भी जाना जाता है। स्कंद या चंपा षष्ठी व्रत दक्षिण भारत, कर्नाटक, महाराष्ट्र आदि में प्रमुखता से मनाया जाता है।
महत्व- धार्मिक पौराणिक मान्यता के अनुसार कार्तिकेय अपने माता-पिता और छोटे भाई श्री गणेश से नाराज होकर कैलाश पर्वत छोड़कर मल्लिकार्जुन, जो कि शिव जी का ज्योतिर्लिंग है, वहां आ गए थे और कार्तिकेय ने स्कंद षष्ठी को ही दैत्य तारकासुर का वध किया था तथा षष्ठी तिथि को ही कार्तिकेय देवताओं की सेना के सेनापति बने थे।
हिन्दू धर्म के अनुसार हर महीने की शुक्ल पक्ष षष्ठी के दिन स्कंद षष्ठी व्रत रखा जाता है। यह व्रत भगवान कार्तिकेय को समर्पित है। शिव पुत्र कार्तिकेय को चंपा के फूल अधिक पसंद होने के कारण ही इस दिन को स्कंद षष्ठी के अलावा चंपा षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। इनका वाहन मोर है। ज्ञात हो कि स्कंद पुराण कार्तिकेय को ही समर्पित है। स्कंद पुराण में ऋषि विश्वामित्र द्वारा रचित कार्तिकेय 108 नामों का भी उल्लेख हैं। षष्ठी तिथि पर भगवान कार्तिकेय के दर्शन करना बहुत शुभ माना जाता है।
स्कंद षष्ठी के शुभ मुहूर्त- skand sasthi 2021 Muhurat
स्कंद षष्ठी, गुरुवार, 9 दिसंबरा 2021
मार्गशीर्ष शुक्ल षष्ठी तिथि का प्रारंभ बुधवार, 08 दिसंबर 2021 को रात 09:25 मिनट से होकर गुरुवार, 09 दिसंबर को शाम 07.53 मिनट पर इसका समापन होगा।
पूजा विधि- skand sasthi Puja Vidhi
- चंपा/ स्कंद षष्ठी व्रत के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नानादि करके भगवान का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें।
- अब भगवान कार्तिकेय के साथ शिव-पार्वती जी की प्रतिमा को स्थापित करें।
- पूजन में घी, दही, जल और पुष्प से अर्घ्य प्रदान करना चाहिए।
- साथ ही कलावा, अक्षत, हल्दी, चंदन, इत्र आदि से पूजन करें।
- इस दिन निम्न मंत्र से कार्तिकेय का पूजन करने का विधान है।
skand sasthi Katha कथा- जब पिता दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव की पत्नी 'सती' कूदकर भस्म हो गईं, तब शिव जी विलाप करते हुए गहरी तपस्या में लीन हो गए। उनके ऐसा करने से सृष्टि शक्तिहीन हो जाती है। इस मौके का फायदा दैत्य उठाते हैं और धरती पर तारकासुर नामक दैत्य का चारों ओर आतंक फैल जाता है। देवताओं को पराजय का सामना करना पड़ता है। चारों तरफ हाहाकार मच जाता है तब सभी देवता ब्रह्माजी से प्रार्थना करते हैं। तब ब्रह्माजी कहते हैं कि तारक का अंत शिव पुत्र करेगा।
इंद्र और अन्य देव भगवान शिव के पास जाते हैं, तब भगवान शंकर 'पार्वती' के अपने प्रति अनुराग की परीक्षा लेते हैं और पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होते हैं और इस तरह शुभ घड़ी और शुभ मुहूर्त में शिवजी और पार्वती का विवाह हो जाता है। इस प्रकार कार्तिकेय का जन्म होता है।
कार्तिकेय तारकासुर का वध करके देवों को उनका स्थान प्रदान करते हैं। पुराणों के अनुसार षष्ठी तिथि को कार्तिकेय भगवान का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन उनकी पूजा का विशेष महत्व है।
एक अन्य कथा के अनुसार कार्तिकेय का जन्म 6 अप्सराओं के 6 अलग-अलग गर्भों से हुआ था और फिर वे 6 अलग-अलग शरीर एक में ही मिल गए थे।
ज्योतिष के अनुसार षष्ठी तिथि के स्वामी भगवान कार्तिकेय है और दक्षिण दिशा में उनका निवास स्थान है।स्कंद षष्ठी भगवान कार्तिकेय को अधिक प्रिय होने से इस दिन व्रत अवश्य करना चाहिए।