Varaha jayanti 2024: भगवान वराह की पत्नी कौन थीं?

WD Feature Desk

गुरुवार, 5 सितम्बर 2024 (14:03 IST)
Varaha jayanti 2024: कहते हैं कि सबसे पहले भगवान विष्णु ने नील वराह का अवतार लिया फिर आदि वराह बनकर हिरण्याक्ष का वध किया इसके बाद श्‍वेत वराह का अवतार नृसिंह अवतार के बाद लिया था। भगवान विष्णु के वराह नाम से 3 अवतार हुए हैं : 1. नील वराह, 2. आदि वराह और 3. श्वेत वराह। भाद्रपद की तृतीया तिथि के दिन वराह का जन्म हुआ था।ALSO READ: वराह जयंती कब है 2024 में? जानिए भगवान वराह के बारे में रोचक बातें
 
1. नील वराह : कहते हैं कि नील वराह ने जल में डूबी धरती को बाहर निकाला था और मधु और कैटभ का वध किया था। उन्होंने कठिन परिश्रम किया था इसीलिए उन्हें यज्ञ वराह भी कहा दिया। 
 
2. आदि वराह : इसके बाद आदि वराह ने कश्यप-दिति के पुत्र और हिरण्यकश्यप के भाई हिरण्याक्ष का वध करके इस धरती को बचाया था। 
 
3. श्वेत वराह : इसके बाद भगवान श्वेत वराह का युद्ध राजा विमति से हुआ था। 
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वराह भगवान की पत्नी कौन हैं?
1. दक्षिण भारत की मान्यता के अनुसार पृथ्वी को भूदेवी कहा गया है। कुछ पुराणों में उन्हें भगवान विष्णु की पत्नि कहा गया है। अधिकांश विष्णु मंदिरों में उन्हें श्रीदेवी और विष्णु के साथ दर्शाया गया है। कई वराह मंदिर में वह वराह भगवान की गोद में बैठी हुई दर्शाई गई है। हालांकि कुछ का मानना है कि यह वराही है। 
 
आदिवराह कथा : विष्णु के अवतार वराह भगवान ने जब रसातल से बाहर निकलकर धरती को समुद्र के ऊपर स्थापित कर दिया, तब उनका ध्यान हिरण्याक्ष पर गया। आदि वराह के साथ भी महाप्रबल वराह सेना थी। उन्होंने अपनी सेना को लेकर हिरण्याक्ष के क्षे‍त्र पर चढ़ाई कर दी और विंध्यगिरि के पाद प्रसूत जल समुद्र को पार कर उन्होंने हिरण्याक्ष के नगर को घेर लिया। संगमनेर में महासंग्राम हुआ और अंतत: हिरण्याक्ष का अंत हुआ।
 
एक अन्य कथानुसार ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार वाराह कल्प में दैत्य राज हिरण्यकश्यप का भाई हिरण्याक्ष पृथ्वी को चुरा कर सागर में ले गया। भगवान् विष्णु ने वाराह अवतार ले कर हिरण्याक्ष का वध कर दिया तथा रसातल से पृथ्वी को निकाल कर सागर पर स्थापित कर दिया जिस पर परम पिता ब्रह्मा ने विश्व की रचना की। पृथ्वी सकाम रूप में आ कर श्री हरि की वंदना करने लगी जो वाराह रूप में थे। पृथ्वी के मनोहर आकर्षक रूप को देख कर श्री हरि ने काम के वशीभूत हो कर दिव्य वर्ष पर्यंत पृथ्वी के संग रति क्रीडा की। इसी संयोग के कारण कालान्तर में पृथ्वी के गर्भ से एक महातेजस्वी बालक का जन्म हुआ जिसे मंगल ग्रह के नाम से जाना जाता है। भूदेवी को नरकासुर, मंगला, और सीता की माता माना जाता है।
 
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